Saturday, June 2, 2012

भाग ८


इसी तरह दिन बीतते गए| बबलू के मरे हुए दो साल भी हो गए| ऐसे ही एक दिन बबलू नेहा को बोली - बहुत दिन हो गए मीना को देखे हुए| चलो ना, एक बार मीना से मिलकर मेरे कहने का मतलब है उसको देखकर आते है| दिल को थोड़ी तस्सल्ली होगी| नेहा बोली - नहीं, वहाँ मीना को देखकर तुम्हे बहुत कष्ट होगा| अरे नहीं कम-से-कम एक बार तो चलो, बहुत देखने की इच्छा हो रही है| नेहा फिर बबलू के बहुत मिन्नत करने पर मीना जहाँ रहती थी वहाँ आई| बबलू को तब समझ में आया की नेहा यहाँ क्यूँ नहीं लाना चाह रही थी| इसका कारण था की लालू आजकल खूब दारू पीकर मीना को पहले से भी अधिक सताता था| मीना की अब तो बहुत बुरी दशा हो गयी है| उसका शरीर भी सुख गया है, चेहरा बिगड़ गया है| बबलू एक लम्बी आह भरकर बोला कि मीना कि ये दुर्दशा होगी मैंने सपने में भी नहीं सोचा था| नेहा मैं यही रहना चाहता हूँ मीना के पास| इसे इस हालत में मैं छोड़कर नहीं जा सकता| नेहा बोली - हमलोग यहाँ रहकर भी मीना की कोई मदद नहीं कर सकते| समझो इस बात को बबलू| इसलिए चलो यहाँ से, यहाँ रहकर और कष्ट सहने की जरुरत नहीं है| किन्तु बबलू जाना ही नहीं चाह रहा था| अंततः नेहा चली गयी वहाँ से और जाते हुए बोली कि मैं सुबह आऊँगी| इधर समय के थोडा बीतते ही रात्रि के दो बजे के करीब लालू मीना को और सताने लगा, मरने लगा| बबलू यह सब देखकर सोचने लगा - नहीं, और यहाँ नहीं रहा जा सकता| यहाँ रहूँगा तो सही में मन को और कष्ट होगा| इसलिए यही सब सोचते-सोचते मीना के ख्यालों में डूबा हुआ बबलू ऊपर जाने लगा|

किन्तु तभी बबलू को ये महसूस होने लगा कि वह ऊपर की तरफ तो जाने को निकला तो था लेकिन जैसे कोई शक्ति उसे नीचे की तरफ खींच रही थी| एक ऐसी शक्ति जैसे की कोई चुम्बकीय शक्ति हो| उसे एकदम असीम शक्ति से नीचे की तरफ खींचने लगी| बबलू की सोचने समझने की शक्ति भी एक समय के लिए गायब हो गयी थी| चारो तरफ जैसे अन्धकार छाया हुआ था| बस उसे यह महसूस होने लगा कि, कोई उसे नीचे कि तरफ खींचे जा रहा है, एक असीम वेग से| थोड़ी देर में उसे महसूस हुआ कि उसके साथ और भी कई आत्माएँ इधर-उधर घूम रही है| परन्तु वह वेग और भी बढने लगा| कुछ भी दिख नहीं रहा था| बबलू सोचने लगा - कहाँ वो सूरज, चाँद, कहाँ तारे, पेड़-पोधे और कहाँ मीना और नेहा| कहा गए सब..! कुछ क्यूँ नहीं दिखाई दे रहा| ये हो क्या रहा है|

दरअसल, ऐसे ही कितने वर्ष बीत गए उसे कुछ पता ही नहीं चला| उसे कुछ समझ में भी नहीं आ रहा था| चारो तरफ अन्धकार-ही-अन्धकार छाया हुआ था| बबलू एक गभीर अँधेरी जगह पर अचेतन पड़ा हुआ था| ना जाने कितने महीने और साल बीत गए लेकिन उसे कुछ पता ना चला| उसकी चेतना नहीं लौटी थी| तभी कहीं से आवाज़ आई - बबलू, ओ बबलू...| जल्दी आ जाओ वहाँ से| बबलू को सुनाई दिया, उसकी थोड़ी चेतना जैसे लौटी| ॐ-कृष्ण, ॐ-कृष्ण का जाप करो बबलू| यह नेहा की आवाज़ थी दरअसल| बबलू को धीरे-धीरे होश आने लगा| कोई जैसे आकर उसका हाथ पकड़ा| इस बार बबलू तुम बच गए| बबलू को इतने में होश आया तो देखा कि, सामने नेहा खड़ी है| बबलू आश्चर्यचकित होकर नेहा से पुचा - "क्या हुआ था मुझे नेहा बोलो तो| ये आखिर था क्या ?" जब बबलू कि निगाहें चारो तरफ पड़ी तो वह और अवाक् रह गया| रात्रि बेला थी पृथ्वी की| टिप-टिप बारिश भी हो रही थी| एक बहुत पुरानी झोपड़ी थी सामने| चारो तरफ गन्दगी फैली हुई थी| एक चारपाई पर एक महिला अपने मृत शिशु को लेकर ज़ोर-ज़ोर से विलाप कर रही थी| और आसपास देखा तो और भी लोग थे जो रो रहे थे| बबलू विस्मय से नेहा की तरफ देखकर बोला - ये सब क्या है अब नेहा...| हमलोग कहाँ हैं ? ये सब कौन है, और इस महिला के क्रंदन सुनकर मेरी आँखे क्यूँ भर रही हैं| ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ| इस महिला को तो मैं जनता भी नहीं हूँ| नेहा बोली - चलो बबलू यहाँ से| मैं तुम्हें सब बताती हूँ|

असलियत में बात ये है कि तुम्हारी पृथ्वी में आशक्ति के कारण तुम्हारा पुनर्जन्म हुआ था| अतः छः-सात महीने भी बीत गए, तुम्हें पता नहीं चला| ये महिला और कोई नहीं तुम्हारी माता है| और ये मृत शिशु और कोई नहीं तुम खुद हो बबलू| लेकिन तुम्हारी जन्म लेते ही मृत्यु हो गयी| बबलू का मुँह खुला का खुला रह गया| वह बोला - पुनर्जन्म...| वह कैसे...? हाँ बबलू, पता है भगवान् को कितना पुकारना पड़ा है मुझे और देवी को, तब जाकर तुम्हारा उद्धार हुआ| नहीं तो इसी जन्म और आत्मा के साथ तुम्हें न जाने कितने साल बिताने पड़ते| तुम्हें तब पिछले जन्म के बारे में भी याद नहीं रहता| मीना को भी भूल जाते|अब समझ में आया पुनर्जन्म का मतलब| कितनी बार समझती थी कि, पृथ्वी की तरफ अपने को मत खींचों, मीना के बारे में ज्यादा मत सोचो, लेकिन नहीं, तुम तो मेरी बात सुनते ही नहीं थे...| अब तो समझ में आ ही गया होगा| इसलिए बोलती थी और सावधान भी करती थी कि मीना के तरफ अपने को ज्यादा मत खींचने दो, लेकिन नहीं...सिर्फ अपनी ही मनमानी करते थे| ये देखो ये उसी का ही फल है| बार-बार पृथ्वी के तरफ सोचने का यही परिणाम है| ज्यादा तो नहीं जानती ये गूढ़ रहस्य लेकिन एक बात है कि पुनर्जन्म के लिए उस आत्मा को न जाने कहाँ लाकर खड़ा कर देती है, किसी को नहीं पता|

नेहा बोली अब चलो यहाँ से - मैं तुम्हें पाँचवे स्तर के एक गुरु के पास लिए चलती हूँ| तब बबलू बोला - रुको, मैं एक बार अपनी माता से मिलकर आता हूँ| नेहा गुस्से में बोली - कौन माँ, किसकी माँ ? वैष्णवी माया में मत पड़ो| ऐसे ही तुमको कितने माँ, पिता, स्त्री, भाई, बहन दिखेंगे जो इस माया रूपी संसार में हैं| अतः इनके संस्पर्श में मत रहो और चलो मेरे साथ| बबलू बोला - तुम मुझे क्यूँ यहाँ ले आई| मुझे पृथ्वी ही अच्छा लग रहा था| देखो बबलू, पुनर्जन्म जब होगा होकर रहेगा| तुम्हारे भाग्य में वहीँ लिखा हुआ था और वहीँ हुआ भी| जैसे कि अचानक एक भूकंप आया और फिर कुछ बदलकर शांत हो गया| और तुम्हारे भाग्य में पुनर्जन्म था और फिर तुरंत मृत्यु भी| मैं कौन हूँ तुम्हे यहाँ लानेवाली, सिवाय एक हेतु या मध्यमिका के| बाकि सब तो तुम्हारा भाग्य ही है| यही सब कहते-कहते नेहा बबलू को गुरुदेव के पास ले आई| नेहा का मकसद था कि इसे सही उपदेश मिले ताकि इसका पृथ्वी के तरफ का मोह दूर हो सके| फिर गुरुदेव जी से कुछ जानने के बाद वे लोग देवी के पास आये| परन्तु देवी के उपदेशों का भी शायद बबलू को कोई असर नहीं हो रहा था| अंत में देवी उन दोनों को पृथ्वी के एक जगह पर ले आई| रात्रि का समय था| देवी ने उन्हें दिखाया, देखो बबलू, इन घरों में निम्न स्तर कि अनेक आत्माएँ रहती हैं, जो इधर-उधर घूम रही है|

कोई इस घर से उस घर तो कोई उस घर से इस घर| ये लोग यदि सही में मनुष्य होते तो तो तुम्हे लगता कि ये लोग कोई चोर या डकैत है| बबलू पुचा - ये आत्माएँ यहाँ क्या कर रही हैं ? देवी बोली - ये लोग पृथ्वी में जन्म लेने के लिए घूम रहे हैं| प्रत्येक रात्रि में ये आत्माएँ ऐसी ही घुमती हैं| तृष्णा, वासना, कामना से परिपूर्ण इन आत्माओं को उच्च स्तर अच्छा नहीं लगता| अतः ये ऊपर नहीं उठाना चाहते, बल्कि पृथ्वी में ही फिर से जन्म लेना चाहते है| इनको पृथ्वी लोक ही अच्छा लगता है| बबलू फिर पूछा - ये लोग ऐसे कितने दिन् घूमते हैं ? देवी हँसते हुए बोली - पृथ्वी के समयानुसार कोई दस साल तो कोई बीस| दरअसल इन्हें ही तो हमलोग पृथ्वी में प्रेत या प्रेत-आत्मा के नाम से पुकारते हैं| अब चलो यहाँ से, चलते हैं| देखो बबलू, जैसा मैंने पहले भी कहा था कि इन माया बंधनों से मनुष्यों को मुक्त होने की कोशिश करनी चाहिए| इन्सान को चाहिए की वह ईश्वर की आराधना करे, स्तुति करे| उन्ही में लीन रहे| साडी अशक्तियों का त्याग करे| कोई मोह, माया न रखे| सिर्फ भगवान् के बारे में ही सोचे| इसी से ही मुक्ति हो सकती है| ऊपर क स्तरों में जाया जा सकता है| यही से तो मुक्ति का द्वार भी शुरू होता है| बस जरुरत है तो सिर्फ आस्था की| बबलू और नेहा धयान से यह सब सुनने लगे|

ऐसे ही समय अपनी गति बढ़ाता गया| इधर लालू मीना को अंततः चोरकर चला गया| मीना को अब अपनी गलती का पछतावा हुआ| लेकिन अब पछताने से तो कोई फायदा भी था नहीं| उसे पाने किये का छोभ होने लगा| ग्लानि उसके अंतर-आत्मा को खाए जा रही थी| उसे अब कुछ अच्छा नहीं लग रहा था| इन्ही सब ग्लानियों के साथ उसने आत्महत्या करने की सोची| और एक दिन उसने बिष खाकर अपनी जान दे दी| इधर उसके मृत्यु की खबर उसके बबलू को नहीं थी| परन्तु नेहा को देवी से मीना के बारे में पता चला| नेहा बोली - देवी जी, क्या आप मुझे वह जगह दिखायेंगे कि मीना कि आत्मा अभी कहा हैं| देवी बोली - मीना अभी नरक के एक स्तर में है, जिसको प्रेतलोक भी बोलते है| ये वही स्तर है, जो पृथ्वी के या भूलोक के एकदम ऊपर ही है| इसी को हमलोग नरक भी बोलते है| इसमें भी मुख्यतः सात स्तर होते हैं| ये मनुष्यों के दृष्टि से ओझल रहती है, अर्थात अदृश्य अवस्था में रहती है| इस जगह कि तो कोई अंत सीमा ही नहीं है| न जाने कितनी ही कोस में फैली हुई है| तो इन्हीं स्तरों में से नरक के एक स्तर में मीना है|
ये एक ऐसी जगह है नेहा जहाँ न सूर्य है न चन्द्रमा और न तारे| कोसो तक कोई नहीं रहता| एकदम जैसे मरुभूमि वाली निर्जन जगह है| यहाँ तो पापी आत्माएँ कई प्रकार कि तो ऐसे है, जिनकी मुक्ति हुई ही नहीं अर्थात ऊपर के स्तरों में वे जा ही नहीं सके हैं| वे लगभग १००-५०० सालों तक यहीं भटक रहे है| तो कोई और न जाने कितने ही वर्षों तक| ये सब सुनकर तो नेहा के जैसे होंठ सूखने लगे, रोंगटे खड़े हो गए| इतने में नेहा देखी, मीना एक काले पत्थर के ऊपर अपना सिर झुकाए बैठी हुई है| देवी बोली - जाओ नेहा, तुम एक बार मीना से मिल आओ| अच्छा तो देवी - क्या मीना मुझे देख पायेगी ? देवी बोली - हाँ, देख पायेगी नेहा, तुम जाओ|

दरअसल दोस्तों, होता ऐसा है कि निम्न स्तर कि आत्माएँ, उच्च स्तर कि आत्माओं को देख नहीं पाती| या तो उच्च स्तर के आत्माओं से एक रौशनी जैसी निकलती है या तो उनका तेज़, निम्न स्तर कि प्रेत-आत्माएँ सहन नहीं कर पाती | इसलिए देवी ने नेहा को अपनी शक्ति देकर मीना के पास भेजा |

नेहा मीना के पास जैसे ही पहुँची, मीना पूछी - "तुम कौन हो ? और ये कौन सी जगह है ?" यहाँ न कोई जन-प्राणी है न कुछ| कितनी भूख भी लगी है| पानी का भी कोई स्त्रोत नहीं दिख रहा| मैं यहाँ कितने दिनों से हूँ, मुझे तो ये भी नहीं पता| नेहा बोली - मीना तुम मर चुकी हो| तुमने बिष खाकर अपनी जान दी थी| अतएव तुम अभी प्रेतलोक में हो| परन्तु तुम्हे मेरा नाम और ये भी कैसे पता कि मैं मर चुकी हूँ| मैंने कब बिषपान किया था| नेहा बोली - क्यूँकि, मैं भी मर चुकी हूँ| मेरी भी मृत्यु हो चुकी है| इतने में बात करते-करते अचानक उन्होंने देखा जैसे एक नर-आत्मा उन दोनों नारी आत्माओं को देख दौड़े चला आ रहा था| उसका चेहरा बड़ा ही भयावह था| मीना तो तुरंत नेहा पीछे चिल्लाते हुए छिप गयी| नेहा भी एक पल के लिए डर गयी| परन्तु जैसे ही वह प्रेत-आत्मा मीना के सामने आया, मीना के तेज़ के कारण वह आत्मा सिकुड़ कर छोटा हो गया और एकदम से विलीन हो गया| नेहा ये सब देख रोते हुए मीना के पैरों पर गिर पड़ी - तुम कौन हो देवी ? मुझे यहाँ से ले चलो| मुझे बचा लो| मैं यहाँ नहीं रहना चाहती| मुझे यहाँ एकदम अच्छा नहीं लगता| नेहा बोली - मत रो ऐसे...| मैं अभी तुम्हे नहीं ले जा सकती| क्यूँकि ये नहीं तो प्रारब्ध के खिलाफ होगा| ये तुम्हारे कर्मफल का ही नतीजा है, जिससे तुम्हारी ये दशा हुई है| अतः तुम्हे फिलहाल यही नरक भोग करना पड़ेगा| इतना बोलकर नेहा वहाँ उसके आँखों से ओझल हो गयी|

नेहा फिर बबलू के पास आई, और उसे मीना के बारे में साडी बातें बताई| बबलू तो यह सब सुनकर पहले विश्वास ही नहीं कर रहा था, परन्तु सारी बातें सुनने के बाद बहुत उदास हो गया| रोने लगा| सच तो आखिर सच ही था| बबलू तुरंत बोला - मुझे अभी मीना के पास लिए चलो| अब तो नहीं रहा जाता| मुझे उससे मिलना है| नेहा बोली - नहीं बबलू, तुम अब नहीं मिल सकते| दरअसल मीना भी तुमको अब नहीं देख सकती| और दूसरी बात तुम उस स्तर तक जा भी नहीं सकते, क्यूँकि वह नरक का स्तर है और तुम स्वर्ग के एक स्तर की आत्मा हो| बबलू ये सब सुनकर हतास और उदास होकर पृथ्वीलोक की तरफ चल दिया|

बबलू एक पेड़ के नीचे अशांत मन से बैठा हुआ था और मीना के बारे में सोच रहा था| तभी वह देखा कि उसके बचपन का दोस्त अनिल आ रहा है उसके पास| अनिल बोला - अरे.., बबलू तुम ! कैसे हो ? चलो, आखिरकार कोई तो दिखाई दिया| बबलू पूछा - कोई तो दिखाई दिया का मतलब| अरे दोस्त, अब क्या बताऊँ| पता नहीं क्या हो रहा है मेरे साथ| अपने घर जाता हूँ तो आजकल कोई मेरे से बात ही नहीं करता| सब तो जैसे रोते-बिलखते नज़र आते है| उल्टा मैं तो किसी को छु भी नहीं पता| आज तुम दिखाई दिए तो सोचा तुमसे एकबार बात करके देखूं| और देखो तुम्हारा जवाब भी आया| लेकिन मेरे घरवाले..., ये सब क्या चक्कर है बबलू| बबलू को ये सब सुनकर थोड़ी हँसी आई| क्यूँकि अब तो वह ये सब बातें समझने लगा था| वह बोला - देखो अनिल, बात ऐसी है कि तुम्हारी अब मृत्यु हो चुकी है| इसलिए ऐसा हो रहा है| वे लोग तुम्हे अब कभी नहीं देख पायेंगे| लेकिन तुम्हारी आत्मा उन्हें जरुर देख सकती है| और यही कारण है कि तुम मुझे देख सकते हो, क्यूँकि मेरी भी मृत्यु हो चुकी है| अनिल का मुह खुला का खुला रह गया| वह बोला - हे भगवान्, मेरी मृत्यु हो गयी| कब, कैसे मुझे तो पता ही नहीं चला| खैर अब समझ में आया कि मेरे दादाजी जो आज से २० साल पहले मरे जा चुके हैं, उन्हें क्यूँ देखता हूँ| पता है बबलू, वे अभी भी अपनी दुकान आते हैं, और तिजोरी के पास बैठकर पैसा गिनते रहते हैं| अगर मेरा भाई किसी ग्राहक को कम दाम में सामान बेचता है तो वो जोर-जोर से चिल्लाकर मन करते है, लेकिन उनकी कोई नहीं सुनता| और कोई सुने भी क्यूँ, वे तो अब इस दुनिया में ही नहीं है| किसी जीवित को दिखाई थोड़ी देंगे| इतने में बात करते-करते उसके दादाजी भी वह आये| बबलू ने उन्हें प्रणाम किया| बबलू बोला - आपको अभी तक पैसा का लालच नहीं गया| क्या करे बेटा, मुझे कुछ अच्छा ही नहीं लगता| पैसे के बिना मुझे कुछ दिखाई भी नहीं देता| और वैसे भी आजकल तो पैसा ही सबकुछ है ना| इसलिए मैं हमेशा अपनी दुकान पर बैठता हूँ|

वे लोग बात कर ही रहे थे की इतने में वहाँ नेहा आई| बबलू ने उनलोगों को नेहा से मिलवाया| नेहा बोली - दादाजी, आप पैसों की माया को त्याग दीजिये, अन्यथा आपकी मुक्ति नहीं होगी| आपको बार-बार इस पृथ्वी पर आना होगा, जन्म लेना होगा| इन सब चीजों में कुछ नहीं रखा है| ये सब आपका न कभी था और न ही रहेगा| कल आपका था, आज आपके बेटे का है, कल किसी और का होगा| ईश्वर के बारे में सोचिये, उनकी आराधना कीजिये| आप ही देखिये इसी मोह-माया के कारण आप ऊपर भी नहीं जा पाए| आपको सिर्फ और सिर्फ पैसा ही याद आता है| अतः, आप स्वर्ग के इस निम्न स्तर में २० साल से रह गए हैं, और यही भटक रहे है, घूम रहे है| भगवान् के बारे में अगर २० साल तक सोचते तो न जाने आप अभी कहाँ होते| पृथ्वी एक नश्वर जगह है| सरे लोग माया से बंधे हुए है| सब व्यर्थ है| मनुष्य को अपने जीवन काल में एक समय तक अपना कर्तव्य करना चाहिए, लेकिन बाद में ईश्वर के बारे में ही सोचना चाहिए, अपना समय देना चाहिए| तभी मुक्ति का द्वार खुलेगा| पुनर्जन्म से बचे रहेंगे| तीनो धयान से नेहा की बातें सुन रहे थे| दादाजी को भी अब नेहा की बातें समझ में आने लगी|

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