Tuesday, June 5, 2012

भाग ६


इधर बबलू का मन तो बहुत उदास है| नेहा बोली - चलो बबलू, हमलोग देवी जी से मिलकर आते है| बबलू बोला - नहीं, मैं वहाँ नहीं जा सकता| उतने ऊँचे स्तर में जाकर मुझे तो किसी भी चीज़ का होश ही नहीं रहता| और वैसे भी मुझे मीना की चिन्ताएं पृथ्वी की और खींच रही है| इसपर नेहा बोली - वह सब सोचकर कोई फायदा होगा क्या ! जिसके भाग्य में जो लिखा होता है वही तो होगा ना|

कुछ महीने बाद, मीना जिस व्यक्ति से चोरी-छिपे मिलती थी, वह उसे बहला-फुसलाकर कोलकाता ले आया| वैसे उसका नाम लालू था| उसने मीना को वहाँ पर एक भाड़े के घर पर रखा था| बबलू रोज रात में मीना के उस घर में जाता था| अब तो मीना विधवा के वेश में नहीं रहती| वह अब तो जैसे लालू की पत्नी बन चुकी थी| एकदम ही आराम से रहती थी, जैसे की कुछ हुआ ही ना हो| यहाँ तक की, मीना तो अपने बेटे को भी छोड़ कर आई थी| इसी तरह देखते-देखते छः महीने बीत गए| अबतक में मीना और लालू एक दंपत्ति की तरह जीवन बिता रहे है| इधर नेहा अनेक कोशिश की बबलू को वहाँ से लाने की किन्तु बबलू सुनता ही नही था| यहाँ तक की वह नेहा को बिना बताये भी मीना के घर चला जाता था| ऐसे में एक दिन नेहा बोली, चलो बबलू हमलोग देवी को जाकर ये सारी बात बतात्ते हैं| बबलू बोला - ठीक, लेकिन देवी को यही बुलाओ| मैं कहीं नहीं जाउँगा| और-तो-और, मैं तो अब यहीं पृथ्वी पर ही भूत बनकर घूमूँगा| मैं क्या करूँ !!! हमलोग तुमलोगों की तरह ऊँचे स्तर वाले व्यक्ति नहीं है ना| हमें तो यहीं कर्मफल भुगतना होगा| नेहा सोचने लगी कि बबलू को अगर इस सोच और चिंता से दूर नहीं किया जाये तो इसकी उन्नति नहीं होगी| क्यूंकि, जितने दिन भी मीना रहेगी और जहाँ-जहाँ जाएगी, बबलू भी वही पहुँच जाएगा| ऐसे में तो दोनों को क्या लाभ मिलेगा...|

इसी तरह कई साल बीतने लगे| समय के साथ-साथ लालू भी बदलने लगा| वह अब मीना को सताने लगा| यहाँ तक कि उसको अब मारता भी था| यह सब देखकर बबलू को बहुत ही गुस्सा आने लगा और मन-ही-मन सोचता कि यदि मैं द्वितीय स्तर में रहा होता तो भूत या प्रेत बनकर इसे इतना डरता कि ये ऐसी हरकत कभी नहीं करता ............|
तब एक दिन नेहा बबलू को आकर बोली - चलो, अब हमें देवी के पास जाना चाहिए| वे जरुर हमारी मदद करेंगे| एक बहुत छोटा सा द्वीप, जो चारो ओर उपवन से घिरा हुआ है, लताओं से भरी हुई है, कुछ दुरी पर पहाड़ो से झरने कि मधुरम आवाज़ और इन्ही सबसे उस द्वीप का सौंदर्य अनूठा हो चला है....| एक बहुत ही पुराने पेड़ के तल में, झड़े हुए पत्ते पर देवी बैठी हुई है| किसी की भी वहाँ छाया तक नही है| एकदम शून्य जैसा निर्जन प्रतीत हो रहा है, परन्तु देवी के सौंदर्य और उज्जवलता से वह वन-स्थली मनमोहक हो गयी है| बबलू सोचा - यही स्वर्ग है क्या! इसी सौंदर्य से गढ़ी कोई अगर छवि हो सकती है तो इसी को ही स्वर्ग बोला जायेगा| पृथ्वी में ऐसा वन्यरुपी समावेश कहाँ है, और अगर है तो ऐसी मनमोहक और सुन्दर लड़की/औरत कहाँ है और अगर वो भी है तो ऐसी निर्जनता कहाँ है .....| देवी कि इच्छा-शक्ति कितनी अनुपम है, अद्वितीय है, अलौकिक है| देवी की ऐसी छठा, ऐसा सौंदर्य, ऐसी मुख-मंडली को देखकर भी अगर कोई भगवान् पर विश्वास ना करे कि वह हैं इस दुनिया में, तो उसके जैसा निर्बोध और अभागा इस संसार में दूसरा कोई ना होगा| धन्यवाद नेहा, क्यूंकि ये सब मैं तम्हारे कारण ही देख पा रहा हूँ| मैं कितना भाग्यशाली हूँ| ओहह हह ह.........!!!

मीना कि सारी बातें और कुछ दिनों कि बबलू के साथ बीती हुई सारी घटनाओं को नेहा ने देवी को विस्तारपूर्वक बताया| उसने कहा - बबलू तो हमेशा ही मीना के बारे में सोच रहा है| उसका यह आकर्षण तो उसे फिर पृथ्वी कि तरफ खींच रहा है| अब आप ही बताएँ देवी जी क्या किया जाय|

देवी सब सुनकर बोली - अच्छा, मीना के लिए तो किया नहीं जा सकता| जबतक उसे ठोकर नहीं लगेगी तबतक उसको सद्बुद्धि नहीं आएगी| नेहा बोली - क्या आप फिर भी इनकी मदद नहीं कर सकती| आप तो कुछ भी कर सकती है| देवी हंसकर बोली - देखो, इनका भला होगा तो मुझे भी तो अच्छा लगेगा ना| दरअसल, ये सब बहुत निम्न स्तर की आत्माएं हैं| कोई दूसरा थोड़े ही ना उन्हें कष्ट दे रहा है, अपितु वे लोग खुद ही अपने कर्मफल के कारण कष्ट भुगत रहे हैं| सुनो, भगवान् सबको बहुत बड़ा देखना चाहते है; सत, सुन्दर और निर्मल देखना चाहते हैं और जिनके ह्रदय में स्वार्थ,त्याग,दया,माया,भक्ति और प्रेम का वास नहीं है, इन सबको जगाने की कुशलता सिर्फ-और-सिर्फ उसी भगवान् या परम-परमेश्वर का है| अत्यंत कष्ट,रोग,शोक और पीड़ा देकर भी भगवान् मनुष्यों को सही रस्ते में लेन का प्रयास करते हैं| इसके बावजूद भी वे अगर सही रस्ते पर नहीं आते हैं तो उनको पृथ्वी से अलग किसी अन्य जगह पर मरणोपरांत रख दिया जाता है| ऐसे ग्रहों में लोग सबकुछ धीरे-धीरे सीखते है| साधारणतया, पृथ्वी में जो लोगी की चाल होती है, उसकी अपेक्छा इस ग्रह या स्थान में लोगो की चाल बहुत धीमी होती है| वे सारा कुछ पुनः सीखते हैं, अपनी गलतियों को समझते-सुधारते हैं, परन्तु धीरे-धीरे| विवेकहीन लोग तो और-तो-और ही धीरे-धीरे सीखते हैं| इस जगह में भी कभी-कभी नरक जैसा जीवन व्यतीत करते हैं| अति निम्न-स्तर के लोग बहुत ठोकर खाकर सीखते है| एक तरह से कहा जाय तो यह एक बहुत बड़े विद्यालय की तरह है| क्या तुम देखना चाहते हो ? चलो, तो मैं तुम्हे वहाँ लिए चलता हूँ|

नेहा बोली तब - अच्छा तो मीना का क्या होगा ? देवी बोली - अच्छा, तो मैं थोड़ा सोचकर बताती हूँ| कुछ देर उपरांत देवी अपनी आँखों को धीरे से खोली और बोली - अभी भी और तीन जन्म बाकी है मीना को| क्यूंकि, उसके ह्रदय में प्रेम, दया की कोई भावना नहीं है| सिर्फ स्वार्थ भरा हुआ है| तुम ही देखो ना, वह अगर बबलू को प्यार करती तो वह किसी दुसरे का हाथ नहीं थामती| कितनी स्वार्थी है मीना| और-तो-और वह मीना लालू को भी प्यार नहीं करती| उसमे भी उसका स्वार्थ छिपा हुआ है| वह सिर्फ सांसारिक सुख के लिए ही लालू के साथ आई है....| बबलू के मन में मीना के लिए बहुत प्रेम था और है, इसलिए ही वह बार बार मीना को देखने चला जाता है, उसके बारे में चिंता करता है| बबलू बोला - हाँ देवी जी, मुझे उसकी बहुत चिंता होती है, उसका कष्ट मुझसे नहीं सहा जाता|

इसपर देवी बोली - तुम जिसको समझ रहे हो कष्ट या पाप , वह इसको समझ रही है सुख और सांसारिक सुविधा| वह जिस दिन पाप समझ कर इसका त्याग करेगी तभी ही उसकी उन्नति हो सकती है| बबलू बोला - देवी जी, आप अगर उसको पापी समझ कर ही उसकी मदद करे तो...!!! देखो बबलू, जो सिर्फ पाप को ही सुख समझता हो, जिसको पश्चाताप का कोई अनुभव ही न हो, पाप को जो आनंद का रास्ता समझ रहा हो, जिसके मन में त्याग नहीं हो, कर्त्तव्य-बोध ना हो, तो ऐसे लोगों को सिर्फ दया-भावना से ठीक नहीं किया जा सकता है| नेहा बोली - यदि हमलोग रोज़ उसके मन में अच्छी भावना डालने की चेष्टा करे तो...! बंजर भूमि में धान उग सकता है क्या ? जो जैसा चाहता है, उसको वही मिलता है| जो रोकर भगवान् से प्रार्थना-कर बोले कि मुझे छमा करो, मुझे सही रास्ता दिखाओ, पाप और पुण्य में भेद करना जान गया हो, तभी हमलोग उसकी मदद करने को व्याकुल हो उठते है| जिसको ज्ञान चाहिए उसको ज्ञान का रास्ता दिखाया जाता है, जिसको भगवान् की भक्ति चाहिए उसके मन में भक्ति का संचार कर दिया जाता है| जो बोलता है मुझे भगवान् को देखना है, उसको भगवान् खुद दर्शन देते है| इसपर बबलू आश्चर्यचकित होकर बोला - क्या सही में भगवान् दर्शन देते है| इसमें अविश्वास करने की क्या बात है| जो जिस रूप में उनको देखना चाहता है, भगवान् उनको उसी रूप में दर्शन देते है| और वैसे भी भगवान् की विराट रूप की धारणा आखिर कौन कर सकता है| वे तो करुणा के सागर है, हम तो कल्पना भी नहीं कर सकते उनके करुणा-मयी हृदय की| तुम तो समझ भी नहीं सकते की कितने बड़े करुणा के सागर है हमारे भगवान्| देवी फिर बबलू को बोली कि मुझे मीना की बात याद रहेगी, लेकिन जहाँ तक मुझे लगता है अभी बहुत देर है उसके लिए सही रास्ते को अपनाना| तुम पृथ्वी में अब आना-जाना ज्यादा मत करो| क्यूँकि, पृथ्वी में जाने से ऐसी बहुत सारी कामना-वासना है जो तुम्हे अपनी ओर खिंचेंगी और तुमको कष्ट पहुँचायेंगी| तुम अगर जाओगे तो तुम्हे मीना को देखकर बहुत कष्ट होगा और तुम चाहोगे की फिर से तुम्हारा पुनर्जन्म हो| और यही प्रबल इच्छा तुमको फिर से पृथ्वी में आने में मदद करेंगी,फिर से तुम्हारा जन्म हो जायेगा| अतः, पुनर्जन्म फिर से लेके क्या करोगे, क्यूँकि जो काम पिछले जन्म में किये हो उन सबको फिर से करना पड़ेगा| इससे साफ़ तुम्हारी उन्नति नहीं होगी| जिसके लिए जो भी कुछ करने जाओगे उसके लिए भी कुछ कर नहीं पाओगे...उल्टा खुद ही फँस जाओगे| इस जगत का यही नियम है, जिसको कोई भी इधर-उधर अपने मन से नहीं कर सकता| जो जिस रास्ते पर है, उसको उसी रास्ते पर चलना होता है| अन्य कोई उसका साथ नहीं दे सकता अथवा उसके रास्ते पर नहीं चल सकता| सबको अपना रास्ता खुद ही चुनना पड़ता है और अपनी मंजिल को खुद ही को पाना होता है|

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