बबलू इसपर देवी को बोला - क्या आपकी भी कोई छमता नहीं है| देवी हँसते हुए बोली - तुम तो अभी बच्चे हो, मैं तो क्या इस पृथ्वी के ग्रह-देवताओं के हाथ में भी कुछ नहीं है| जहाँ पर सच में आत्माओं का उपकार होता है हमलोग वही जाते है| जो आत्मा अपनी गलती को समझकर भगवान् से प्रार्थना करता है कि मुझे छमा कर दो, मुझसे गलती हो गयी है, मुझे माफ़ कर दो, मुझे सही रास्ता दिखाओ; भगवान् वही दौड़कर जाते है| उनकी हम जीवों के प्रति कितनी करुणा है, कितना प्रेम है| लेकिन ये कितने ही लोग समझते है|
अब बबलू और नेहा ने इजाज़त माँगी देवी से और वहाँ से दुसरे स्तर में चले गए| लेकिन चलते-चलते बबलू और आगे नही बढ़ पा रहा था चूँकि यह स्तर और भी उच्च था, अतः नेहा अकेली ही चली गयी| उच्च स्तर में जाते-जाते नेहा की मुलाकात एक प्रेम की देवी से हुई| प्रेम की देवी नेहा को बोली - चलो नेहा, मैं तुम्हे आज एक विचित्र जगह में ले जाऊँगी| यह जगह कोई आम जगह नहीं थी| सही में ही विचित्र थी| बहुत रंगों के मेघों से ढकी हुई थी| चारों तरफ रौशनी ही रौशनी| जाते-जाते प्रेम की देवी नेहा को बोली - उधर एक बार देखो ज़रा| नेहा देखी एक बहुत ही सुन्दर औरत जिसकी उम्र बहुत ही कम दिख रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे की बहुत आध्यात्मिक रूपी औरत हो| एक बहुत पुरानी बेंच में बैठकर वो कुछ साफ़ कर रही थी| ये देखकर नेहा को कुछ खास समझ में नहीं आया| प्रेम की देवी बोली - उसका पति एक शिकारी था| शिकार करने गया था, लेकिन किसी जानवर ने उसे खा लिया था और उसकी मृत्यु हो गयी| ये आज से लगभग सत्रह-अठारह साल पहले की घटना है| दरअसल, अपने पति की तम्बाकू खाने की नल(पाइप) को साफ़ करती थी और फूलों से सजाती थी| कितनी ही सुंदर है, अतः इस विधवा से शादी करने के लिए कितने ही लोगो का प्रस्ताव आया, लेकिन इसने सबका प्रस्ताव ठुकरा दिया| इतना दुःख और कष्ट सह रही है, लेकिन अपने पति का ही धयान करती है और उसी की याद में डूबी रहती है|
इसपर नेहा बोली - तो, आप इसे अपने पति से एकबार मिला क्यूँ नहीं देते| तो प्रेम की देवी बोली - अगर प्रेम का आकर्षण दोनों में से किसी एक की भी नहीं रहे तो एक दुसरे से मुलाकात नहीं होती है| नेहा बोली - क्या ऐसा भी होता है ? क्यूँ नहीं होगा| पता है, आज से ३०० वर्ष पहले एक औरत की मृत्यु हो गयी थी| फिर उसके २५ वर्ष बाद ही उसके पति की मृत्यु हो गयी| लेकिन आजतक भी दोनों की मुलाकात एक दुसरे से नहीं हुई है| और इसका सबसे बड़ा कारण है की दोनों में प्रेम नहीं था| प्रेम के नहीं होने से हमलोग उन आत्माओं को अपसा में नहीं मिलते है| चूँकि इससे लाभ नहीं अपितु हानि ही होती है| नेहा आश्चर्यचकित होका बोली - अभी तक दोनों का मिलन नहीं हुआ है| कितनी अद्भुत बात है....ओह्ह्हह्ह !!! प्रेम की देवी बोली - और होगी भी नहीं, चूँकि वे एक दुसरे के बने ही नहीं है| सच्चा प्रेम परस्पर दो आत्माओं का संयोग कराती है| जिस प्रेम में कोई कामना-वासना नहीं हो, वो प्रेम सही मायने में प्रेम कहलाता है, वही सच्चा प्रेम होता है| इतना बोलकर प्रेम की देवी चली गयी|
नेहा इधर लौटकर नीचे आई परन्तु बबलू को नहीं पाई| दरअसल बबलू फिर से मीना के पास चला गया था| नेहा बबलू के पास गयी और बोली - आप यहाँ ज्यादा मत रहिए, चलिए मेरे साथ| बबलू बोला - नेहा तुम जाओ, मैं यहाँ थोड़ी देर और रुकूँगा| नेहा महसूस की - बबलू पृथ्वी की तरफ मोह-ग्रस्त हो चूका है| लेकिन ये सब जगहों में उसके लिए रहना ठीक नहीं है| चुम्बक की तरह पृथ्वी की वासना-कामना, मोह-माया सब उसको अपनी ओर खींचने लगेगी| इससे उच्च स्तर में जाने में भी बहुत परेशानी होगी| अतः बबलू के जैसे आत्मा के लिए बार-बार पृथ्वी का मोह बहुत ही नुकसानदेह है| नेहा बबलू को बोली - आप यहाँ से चलिए| आप जितना मीना को देख्नेगे उतना ही आपको कष्ट होगा| इसी तरह नेहा बबलू को वहाँ से ले ऊपर की ओर ले गयी|
फिर वे दोनों एक बड़े साधक भक्त के पास ले आई| मंदिर के चारों ओर बहुत बड़ा बागीचा था| चारों तरफ फूल-ही-फूल थे| इतनी सुगंध भरी थी चारों ओर की मन मुग्ध हो जाये| ऐसे सुगन्धित और मनोरम फूल बबलू ने कभी नहीं देखे थे| बबलू ये सब देखकर मन-ही-मन सोचने लगा - कि इन सब स्तरों में भी बागीचे होते है पृथ्वी की तरह| आखिर कौन लगता है इनको| कौन इन फूलों कि माली करता है, इतने मेहनत से मिटटी खोदकर इस तरह के विस्मित पेड़-पौधों को लगाता है| अचानक अन्दर से आवाज़ आई - आओं, मैं तुमलोगों का ही इंतज़ार कर रहा था|
तभी दोनों आवाज़ की तरफ मुड़े, तो देखा की एक वृद्ध व्यक्ति जिसके चारों तरफ रौशनी ही रौशनी है; बगीचे के बीचोबीच बैठा है| दोनों ने उनको प्रणाम किया| चारों तरफ चन्दन और फूल की सुगंध थी| वृद्ध बोले - "अच्छा पहले गोपाल(कन्हैया) के दर्शन करके आओ|" दर्शनोंपरांत, दोनों वृद्ध से पूछे कि आप पृथ्वी लोक छोड़कर यहाँ कितने दिनों से हैं| वृद्ध बोले - वैसे उतना तो याद नहीं है| कुछ देर सोचकर बबलू पूछा - अच्छा, यह तो स्वर्ग का एक स्तर है या फिर कहे तो स्वर्ग ही है, जहाँ भगवान् खुद विराजमान है, तो फिर यहाँ ऐसे पत्थरों कि मूर्ति क्यूँ जैसा कि पृथ्वी लोक में है ? देखा जाय तो पृथ्वी-लोक में ही पत्थरों कि मूर्ति की जरुरत होती है| वृद्ध इसपर बोले - अब भगवान् यहाँ है या नहीं, या फिर दर्शन देंगे की नहीं, यह तो मैं नहीं जानता| मैं तो बस इतना जानता हूँ कि मैं पृथ्वी में एक ब्राह्मण था और दिनभर अपने गोपाल कि पूजा-आराधना करता था| अतः वह लोक छोड़ने के बाद भी मेरा मन यहाँ वैसे ही पूजा करने को किया| अतः मैंने यहीं एक मंदिर और बगीचे वगेरह बना डाले| और वैसे भी ये तो तुम जानते ही हो कि स्वर्ग में कल्पना शक्ति कितनी मजबूत होती है| दिनभर उनकी पूजा-अर्चना में ही बीत जाता है| तभी अचानक मंदिर के भीतर से आवाज़ आई कि वहां बैठकर इतने आराम से क्या गप्पे हाँक रहे हो, इधर आके थोडा पानी तो देकर जाओ| नेहा बोली - जाइये आप, उनको पानी देकर आइये| इतने में बबलू चौंका और पूछा कि ये आवाज़ कैसी थी और किसकी...| वृद्ध उठते हुए बोला - यहीं तो हैं, मेरे बाल-गोपाल| तुम्हारा भाग्य बहुत ही अच्छा है जो तुम्हे यहाँ आकर उनकी मधुमय आवाज़ सुनाई दी| रुको मैं आता हूँ|
वृद्ध के आते ही बबलू पूछ बैठा - अच्छा इस तरह से आप यहाँ कितने वर्षों तक रहेंगे| आप क्या मुक्ति पाना नहीं चाहते| वृद्ध बोले - अब उनकी जबतक इच्छा होगी मुझे यहाँ रखने की तो मैं यही रहूँगा| अच्छा सुनो, वृन्दावन में गोविन्द-जी की आरती हो रही है, चलो देखने जाएँ| फिर तीनो वृन्दावन के उस आरती-स्थल पर पहुँचे| बबलू देखा कि अनेक उच्च स्तर कि आत्मा भी आरती देख रही है और साथ में जीवित मनुष्य भी है| परन्तु जाहिर सी बात है कि जीवित मनुष्यों को आत्मायें नहीं दिखाई देंगी| कुछ देर उपरांत आरती देख वे लोग वापस उस बगीचे में लौट आये|
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