Tuesday, June 19, 2012

~ मृत्यु क्या है [...what is death...]


दोस्तों, कुछ बातें ऐसी होती है, जिनको छुपाया या फिर दबाया नहीं जा सकता| वह हमारे सामने एक कड़वे सच की तरह होती है, जिसे हमें जाने या अनजाने में अपनाना ही पड़ता है| आप उनसे दूर नहीं भाग सकते और न वो आपसे दूर भागेगी| बस, बीच में दुरी रहती है तो सिर्फ समय की| इसी समय के एक छोर में हम रहते है और दुसरे छोर में वह (जिसकी मैं बात करने जा रहा हूँ)| समय जैसे-जैसे बीतता जाता है, बीच की दूरियाँ भी घटती जाती हैं और अंततः हमें उसे किसी भी रूप में अपनाना पड़ता है| या फिर यूँ कहिए, की हम इस पृथ्वी पर एक रोकेट (फुलझड़ी) के समान है, या फिर हमें रोकेट के रूप में भेजा जाता है| जब हम पृथ्वी पर आते हैं, उस रोकेट के पलीते में आग लगा दी जाती है| हमारे यथोचित पूर्व-जन्म के कर्मों के द्वारा ही उस पलीते का आकर बनाया जाता है| अतः, जैसे-जैसे हमारे दिन शुरू होते है, पलीता जलते-जलते धीरे-धीरे आकर में छोटा होता जाता है| और जैसे ही वह पलीता पूरी तरह जल जाता है, रोकेट पृथ्वी से छुट जाता है ऊपर की ओर| यह एक जीवंत उदाहरण की तरह ही है कि पलीते के पूरी तरह जलते ही जैसे रोकेट छूटता है, हम (हमारी आत्मा) भी ऊपर कि ओर चले जाते है| हमारा कर्म रूपी वह पलीता जैसे-जैसे जलता है, वैसे-वैसे हमारी आयु भी घटती जाती है| और अंत में हमारी आत्मा हमारा शरीर छोड़ देती है|

खैर, दोस्तों, आप सभी को उपर्युक्त बातों पर गौर कर लग रहा होगा कि मैं भी ये रोकेट,पलीता,कर्म,समय वगेरह के बारे में बात कर रहा हूँ| लेकिन ये सब और कुछ नहीं उसी महान सच को सार्थक करने का तथ्यरुपी विचार है, जिसका ओचित्य सदा से था,है और हमेशा रहेगा| हाँ दोस्तों, मैं बात कर रहा हूँ 'मृत्युं' की| मृत्युं क्या है - वैसे तो दुनिया में बहुत सारी सच्चाई है, लेकिन यह उन्ही सच्चाईयों में से एक अटल सच्चाई है| अतः, सीधे तौर पर कहें तो 'मृत्युं एक सत्य है'|

यह वही मृत्युं है, जिसके आगे न कोई टिक सका, न कोई इसका तोड़ निकाल सका; न कोई इसको भली-भांति आंक सका और न ही कोई इसे अपनाने की चेष्टा कर सका| यह मृत्युं सिर्फ हमारी अर्थात मनुष्यों की ही नहीं अपितु समस्त चर-अचर प्राणियों की है| जड़ से लेकर चेतन तक सब मृत्युं के शिष्य अवश्य बनते हैं| आप अभी शायद सोच रहे होंगे कि मैं जड़ कि बात मृत्युं से क्यूँ कर रहा हूँ| जड़ का आखिर मृत्यं से क्या लेना-देना| क्यूंकि जड़ में तो जीवन होता ही नहीं| लेकिन क्या दोस्तों, मृत्युं क्या सिर्फ चेतन को ही आ सकती है! मृत्युं एक चक्र की तरह है| जिसका ही जीवनकाल समाप्त होता है, मृत्युं उसे समाप्त कर देती है| यह एक गूढ़ रहस्य कि तरह है, लेकिन उधृत रूप में ही है| यहाँ मैंने मृत्युं कि सिर्फ चेतना से ही नहीं अपितु जड़ से भी तुलना कि है| तुलना अर्थात, मृत्युं को प्राप्त होना, उसे पाना| क्या आपको पता है, पत्थर भी कहीं-न-कहीं साँस लेते है| यह बड़े आश्चर्य कि बात है, लेकिन सत्य है| पुराणों में भी इसका उल्लेख किया गया है| अतः पत्थर भी बड़ते है, उनका आकार भी धीरे-धीरे मध्यम गति में बढता है| इनका भी एक जीवनकाल होता है| कुछ पत्थर टूटते है या तोड़ा जाता है या फिर घिसते हैं| ऐसे में ही तो उनका जीवनकाल समाप्त होता है और इनके लिए यही तो मृत्युं है| जब किसी जड़-वस्तु का आकार और अस्तित्व टूटता है, अर्थात उसकी मृत्युं होती है| यहाँ दोस्तों, मेरा जड़ का मृत्युं से तुलना कररने का यही उद्देश्य था|

अतः अब हम कह सकते हैं कि मृत्युं अर्थात जीवन-रूपी चक्र का समाप्त होना| मृत्युं के कई रूप होते हैं| कोई भी प्राणी यह नहीं आंक सकता कि मृत्युं कब उसके जीवन के दरवाजे पर उसकी छवि बनाएगी| कोई किसी रोग से पीड़ित होकर मरता है, तो कोई दुर्घटना का शिकार होता है; कोई दिल के दौरे से अचानक मरता है, तो कोई मृत्युं को जबरदस्ती गले लगा लेता है| वैसे देखा जाये तो मृत्युं एक तरह से अनहोनी है जिसे कोई नहीं टाल सकता| सरे प्राणियों का जीवनकाल पहले से ही लिखा जाता है, जीवनचक्र पहले से ही तय रहता है| और जीवनकाल के समाप्त होते ही मृत्युं उसे गले लगा लेती है| इसलिए कहा जाता है कि दुनिया में बहुत सरे प्रश्न है, जिसमे एक प्रश्न है - ' इस दुनिया में सबसे बड़ा सच क्या है ?' तो इसका उत्तर सिर्फ एक ही है - मृत्युं और केवल मृत्युं|

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