Wednesday, June 6, 2012

भाग ५


बबलू नेहा की तरफ देखकर बोला - ये सब क्या माया है या मिथ्या है...! हमलोग मर के भूत हो चुके है और हमलोगों को ऐसे ही विचरण करना होगा क्या ? हा, हा, नेहा हँसते हुए बोली - अरे, इसी में तो आनंद है| हर युग में आयेंगे, उसी में सुख-दुःख खोजेंगे, यही तो लीला है| भगवान् की ही तो ये सब लीलायें हैं| वही तो ये सब खेल रहे हैं| खेलने वाले मिलेंगे ही नहीं तो खेलेंगे किसके साथ...! इसलिए जबतक वो खेलायेंगे, तबतक खेलो| बबलू बोला - ठीक, और उसके बाद| उसके बाद क्या, उसके बाद जो सबके साथ होगा, वही हमारे साथ भी होगा| बस उनपर आस्था और भक्ति रखो| समयानुसार मुक्ति होगी|

नेहा बोली - छोड़ो ये सब| अभी चलो, पृथ्वी की ओर चलते हैं| वहाँ मीना बहुत दुविधा में है| इसलिए जितना हो सके उसकी मदद करते है| इतने में बबलू बोला - क्या हुआ मीना को, क्या हुआ, बताओ ना...! सब ठीक तो है ना| नेहा हँसकर बोली - तुम अगर इतने ही पृथ्वी की मोह-माया में लिप्त रहोगे तो भगवान् के बारे में कब और क्या सोचोगे| ये सब माया अभी तक नहीं गयी है तुम्हारे मन से| अरे भगवान् की भक्ति करो, आराधना करो| वही एक है जो हमें मुक्ति देंगे|
फिर भी बबलू बोला - चलो ना, एक बार पृथ्वी की तरफ चलते है, मीना को भी देख लेंगे| ठीक है चलो तब| मीना के घर के पास इमली का पेड़ था, जिसके निचे आकर दोनों बैठ गए| बबलू सोचने लगा - कितनी सुन्दर है यह पृथ्वी, कितनी सुख-दुःख और आनंद से भरी है ये पृथ्वी| इस पृथ्वी को छोडना मेरे लिए अच्छा है या बुरा, मुझे पता नहीं| पर यहाँ आते ही यहाँ से जाने की इच्छा नहीं होती| इसी बसंत में कच्चे आम की सब्जी, बेल का शरबत, नदी में स्नान, बाज़ार से सब्जियाँ लाना.......वगेरह-वगेरह| कितना अच्छा लगता था.......अआह!!! पृथ्वी ही अच्छी है| कहाँ यह सब सुख है| मिटटी के रास्ते चलना, दुःख-सुख से भरी ज़िन्दगी...| इतने में नेहा बोली - क्या सोच रहे हो बबलू|

देखो इस तरह के मोह और माया को दूर करो| नहीं नेहा, बहुत अच्छा लग रह है इतने दिन बाद आके| नेहा इसपर बोली - पृथ्वी बहुत वासना और माया से लिप्त है, इसलिए ही बड़ी आत्माएँ यहाँ नहीं आनी चाहती| अतः पृथ्वी पर फिर आने से ज्यादा देर नहीं रुकना चाहिए, नहीं तो पंचभूत/पंचिन्द्रियों के जाल में फँस जाओगे| तुम सही कह रही हो नेहा, वो तो है| बड़े-बड़े आत्मा सब पृथ्वी पर कुछ देर के लिए आते है और पुनर्जन्म की कामना करते है; निम्न-स्तर की दुर्बल आत्माओं के तो क्या कहने| वे लोग इसलिए पृथ्वी के सिर्फ आस-पास ही घूमते है, और घूमते-घूमते अचानक पुनर्जन्म हो जाता है उनका| इसलिए उनका प्रायः पृथ्वी में आना माना है| बबलू हंसकर बोला - जैसे मैं| तुम ही क्यों अनेक महारथियों की यही दशा होती है|

अचानक नेहा पोखर के किनारे देखी और बोली, देखो तो उधर ज़रा| पोखर के किनारे आमबागान के नीचे दुसरे तरफ चोरी-छुपे एक व्यक्ति आया| थोड़े ही देर में मीना घर से निकलकर उस व्यक्ति से मिलने आई| यह देखकर बबलू का मन उदास हो गया| वह बोला - अभी तो मुझको मरे हुए एक साल भी नहीं हुआ है और इतने में ही मीना इतनी गिर गयी......हे प्रभु..,, छी:...| फिर यह सब देख नेहा उसको वह से घर ले आयी|

नेहा बोली मीना की हालत को समझो , उसके इंसानी देह को समझो | अतः कुछ-न-कुछ आकांक्षाये / कामनायें रह जाती है | बबलू विरक्त होकर बोला - अब, फिजूल की बातें मत करो | यही दिखने के लिए लायी थी क्या ! हउ... मन तो कर रहा है की उस लड़के की गर्दन ही दबोच डालूँ ; लेकिन क्या करूँ , हाथ-पैर तो रहते हुए भी कुछ है नहीं, सब हवा है | अब चलो बबलू , यहाँ रह के आप कुछ नहीं कर सकते | नहीं तो फिर रात को आयेंगे |

गभीर रात्रि है| मीना अपने घर में धरती पर लेटी हुई है, सो रही है| नेहा बोली - देखो, गर्मी के कारण सो नहीं पा रही है, अतः थोड़ा रुको अभी सामने मत जाओ| आधी निद्रा अवस्था में अगर तुम गए तो हो सकता है, तुमको वो देख ले और भूत समझ के डर जाये और फिर भाग जाये| बबलू अंततः बाहर जाकर मीना के साथ बिताये हुए पलों को याद करने लगा| थोड़ी ही देर बाद नेहा आकर बोली - आओ बबलू , मीना सो गयी है| देखो तो , कितनी असहाय है ये| बबलू करुण-भरी दृष्टि से देखने लगा| बाकि दुसरे लोग तो चाहेंगे ही इसे दुसरे रस्ते में ले जाने के लिए या फिर भटकाने के लिए| थोड़ी आश्रय की आशा में ये कुछ न सोचकर ही उन लोगों बहकावे में आ जाती है|
बबलू थोड़ा पास आकर बुलाया - मीना, ओ मीना| नेहा बोली - रुको, सिर्फ बुलाने से नहीं होगा| इतने दिन जो तुम दोनों साथ बिताये हो, उसकी एक कोई भी दिन की झलक की छवि बनाओ, अर्थात सपने दिखाओ उसे| बबलू बोला - ये मैं कैसे करूँ ? नेहा इतने में बोली - किसी एक दिन के बारे में तुम अच्छे से थोड़ी देर सोचो| और फिर ये भी सोचकर सोचना की तुम्हे मीना को ये दिखाना है| थोड़ी ही देर में नेहा देखी कि एक शरीर मीना के देह से बाहर निकली और इधर-उधर देखने लगी, किसी मुर्ख कि तरह| नेहा बोली - अपनी इच्छा-शक्ति से उसको सपना दिखाओ| जबतक तुम उन दिनों कि कोई छवि नहीं दिखाओगे वह इस जगत में होश में नहीं आयेगी| बबलू एकाग्रता से पुराने दिनों कि छवि को लेन में समर्थ हुआ| बबलू फिर पुकारा - मीना, ओ मीना| तभी मीना बबलू के चेहरे कि तरफ अवाक् कि तरह देखने लगी, जैसे उसे कुछ समझ ही नहीं हो|

बबलू बोला - कैसी हो मीना, अच्छी हो ना| वैसे मत बोलो बबलू, अपने पुराने दिनों की याद दिलाओ| बबलू जो छवि मीना के मन में बनाया था, मीना उस छवि में घिर गयी| तब बबलू बोला - मीना कल सुबह मुझे काम से बाहर जाना होगा| अतः जल्दी उठकर तुम चाय बना दोगी ? मीना बोली - कितनी सुबह जाओगे ? सात बजे तक - बबलू बोला| मीना की आँखों / मन से वो मुर्खतापन अभी तक हटी नहीं थी| इतने में वह बोली - मैं कहाँ हूँ ? बबलू बोला - क्यूँ, तुम अपने ससुराल में हो याद नहीं आ रहा| अच्छा मज़ाक छोड़ो और ये बोलो की चाय बनाकर दोगी की नहीं ? चाय ही क्यूँ, कुछ नाश्ते के लिए भी बना दूंगी|

अचानक मीना बोल पड़ी - आप कब आये ? मेरे कहने का मतलब है की आप तो इतने दिनों तक घर पर नहीं थे| ये लो, मैं तो घर पर ही था कहा जाउँगा| मीना बोलो - कल बाहर जा रहे हो, मेरे लिए दो साड़ी लाकर दोगे ? बबलू बोला - ठीक है| इतने में नेहा बोली - बबलू, अब चलो एक दिन में तुम और ज्यादा देर धरती पर नहीं रुक सकते| उन दोनों के चले जाते ही मीना की नींद भी टूट गयी|
वह तुरंत उठकर चारो तरफ इधर-उधर देखने लगी| मन-ही-मन सोचने लगी, इतना स्पष्ट सपना वह आज तक कभी नहीं देखी थी| अपने पति को भी इतने स्पष्ट रूप में देखी की जैसे वह अभी बगल में ही बैठे हो| वह जैसे बोल रहे थे की - चाय बना कर देना कल सुबह, साड़ी के बारे में ... वगेरह| उन पुराने बातों को याद करते हुए मीना खिड़की के बाहर पागलों की तरह देखने लगी, सोचने लगी| कहाँ आज उसके पति, और कहा उसका ससुराल| सब जैसे पल में ही ख़त्म हो गया| यही सब सोचकर उसकी आँखे भी करुणा से भर गयी|

1 comments:

Anonymous said...

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