Thursday, June 7, 2012

भाग ४


एक दिन नेहा अपने घर में बैठी थी| जैसा कि मैंने पहले बताया था की इस स्तर में कोई भी अपनी इच्छा-शक्ति से कुछ भी कर सकता है, इसलिए नेहा वहाँ सुबह का समय बना कर रखी थी; ठीक वैसे ही जैसे पृथ्वी से सुबह होती है| नेहा स्नान करके शिव-मंदिर में पूजा करने जा रही थी की तभी देवी आ गयी| वह बोली - तुम पूजा कर लो, फिर तुम दोनों को मेरे साथ चलना होगा| देवी बबलू से बोली - तुम पूजा नहीं कर रहे हो ? नहीं, पूजा में मेरा विश्वास नहीं है तो देवी बोली - देखो, इसमें विश्वास-अविश्वास की कोई बात नहीं है, तुम्हे अपने मन में ही भगवान् को बसाना चाहिए| उनके प्रति श्रद्धा और विश्वास बढ़ाना चाहिए, और इसके लिए तुम्हे उनकी चरण-वंदना करनी चाहिए| अपने मन में बसाये भगवान् की इसी तरह पूजा करोगे तो विश्वदेव (निराकार) तक पहुँच जाओगे| और उनतक पहुंचना मतलब मुक्ति| तुम तृतीय स्तर के स्वर्गवासी प्राणी हो| इससे ज्यादा क्या कर सकते हो| इतना तो तुमको करना ही चहिये| तबतक में नेहा पूजा ख़त्म करके आई| फिर देवी उनदोनों को लेकर पृथ्वी में आई|

वे लोग एक घने जंगल में पहुंचे| जंगल एकदम निर्जन था, आसपास कोई भी नहीं था| कुछ दूर जाने पर एक नदी दिखाई दी| उस नदी के पास में ही एक झोपड़ी थी| इतने घने और निर्जन जैसे जंगल में झोपड़ी देख बबलू एकदम से हैरान हो गया| सबसे आश्चर्य की बात तो यह थी की वह झोपड़ी पृथ्वी की वस्तुओं से नहीं बनी थी, बल्कि कल्पना-शक्ति से बनी थी| पृथ्वी में ऐसा घर कैसे आया बबलू पूछने ही वाला था की तभी एक वृद्ध व्यक्ति कुछ लकड़ियाँ लेकर झोपड़ी के पास आया| बबलू तो सोच में पड़ गया की इतने सुनसान जगह में वृद्ध व्यक्ति| लेकिन बबलू तब और अवाक् हो गया जब देवी उसे बताई कि यह कोई व्यक्ति नहीं बल्कि एक प्रेत-आत्मा है| दरअसल वह एक निम्न-स्तर कि आत्मा थी| इधर वृद्ध को देखकर तो ऐसा लग रहा था कि वह तो किसी को देख पाने में भी असमर्थ था| बबलू बोल उठा - अच्छा तब तो यह शायद जीवित नहीं है, तो यहाँ क्या कर रहा है ? यही बात बताने के लिए ही तो तुम्दोनों को यहाँ लायी हूँ - देवी बोली|

अद्भुत ही दयनीय कथा है इस व्यक्ति की| इसका नाम राजू था| यह अपनी पत्नी पर बहुत शक करता था| और इसी शक के आवेश में आकर उसका खून कर बैठा और डर से छुप गया| पुलिस के डर से अनेक दिनों तक इसी जंगल में छुपा रहा| ८-१० महीने बाद इसे निमोनिया हुआ और इसका देहांत हो गया| इसको मरे हुए तो ४० साल हो गए है, लेकिन इतने वर्ष बीतने के बाद भी इसे महसूस नहीं हो रहा है की ये मर चूका है| सोचता है उसे कोई देख नहीं पता है या पा रहा है| वैसे भी बहुत कम ही लोग जो आते है यहाँ, अतः जीवित मनुष्य के साथ क्या अंतर है उसको यह पता ही नहीं है| बबलू बोला - यह तो बड़े ही आश्चर्य की बात है| देवी बोली - जो लोग मरने के बाद भी नहीं समझते है हम मर चुके है, उनको समझाना बहुत ही कठिन है| क्यूंकि मृत्यु का सही रूप ना जानने से ऐसी निम्न आत्माएँ मृत्यु को नहीं समझ पाती या उसका अंतर नहीं कर पाती| यहाँ तक की, उन्हें न समझाने से ऐसे ही ७०,८०,१००,२०० और न जाने कितने ही साल गुज़ार देते है| बबलू तो यह सब सुनके दंग रह गया| उसको यह सब कुछ भी मालूम नहीं था| और ऐसे में उस वृद्ध के प्रति उसकी सहानुभूति सी हुई|

देवी सत्य में बहुत करुणामयी है| पृथ्वी में रहने वाले इस तरह के दुर्भाग्यपूर्ण असहायों को खोजकर उनकी सहायता करना ही इनका काम है| बबलू बोली - अच्छा वह झोपड़ी| नेहा बोली - नहीं समझे| अरे उसका घर तो कबका मिटटी में मिल चूका है; पर उसके घर की छवि अभी भी उसके दिमाग में बसी है, अतः कल्पनाशक्ति से ही इसे बनाया है| जैसे हमलोगों ने ऊपर घर बनाया है| देवी बबलू से बोली - मुझे और नेहा को तो यह देख ही नहीं पायेगा, इसलिए तुम ही उसके सामने जाओ| इधर शाम होने को थी, अतः चारों तरफ अँधेरा भी छा रहा था| उस घने जंगल में जुग्नुयें भी जाग गयी थी| बबलू वृद्ध के सामने गया| लेकिन हुआ कुछ और ही| वृद्ध बबलू को देखते ही काँपने लगा और चिल्लाने लगा| देवी बोली - वह तुमको देखा और उसे लगा की तुम भूत हो, इसलिए चिल्लाने लगा| नेहा बोली - ये लो, अब भूत भी भूत को देखकर डर रहा है| उसके साथ बात करो बबलू| तब बबलू बोला - आप डरिये मत| आप बताइए की यहाँ अकेले क्यों है ?

तब वृद्ध थोड़ा साहसपूर्वक बोला - आप कौन है ? बबलू बोला - मैं यही रहता हूँ| पास में ही घर है| आप यहाँ अकेले यूँ, कैसे रहते हैं और क्यूँ ? आपका कोई नहीं है क्या ? वृद्ध और सहस करके बोला - बाबु आप क्या पुलिस के आदमी है, मुझे पकड़वा तो नहीं दोगे ना ? अरे नहीं, क्यूँ पकड़वाऊंगा, क्या किये हो आप ? वैसे भी आपकी हालत को देखकर लगता नहीं है कि आपको पुलिस पकड़ने आएगी भी| वृद्ध आश्चर्यचकित होकर बोला - मुझे क्या हुआ है...क्या आप डॉक्टर है ? वैसे तो सच में मुझे भी नहीं पता कि क्या हुआ है| बस ये याद है कि बहुत समय पहले मुझे कोई बीमारी हुई थी, और फिर बीमारी ठीक हो गयी| किन्तु हाँ, बीमारी ठीक होने के बाद से पता नहीं क्या हुआ है मेरी कोई बात सुनता ही नहीं| लोगो को मैं बुलाता भी हूँ लेकिन वे भी मुझे नहीं सुनते है, जैसे कि मैं यहाँ हूँ ही नहीं| मेरे शरीर से जैसे भूख भी मिट गयी है| शरीर तो जैसे बहुत हल्का महसूस होता है, लगता है अभी ही उड़ जाउँगा| और एक बात जब भी कोई चीज़ पकड़ना चाहता हूँ, पहले जैसे नहीं पकड़ पाता, हाथ आर-पार हो जाता है| ये कैसा रोग है बाबु !!!

अच्छा मैं ये सब समझ गया| आप पहले ये बताईये, पुलिस से इतना डरते क्यूँ है...क्या किये थे ? कुछ उदास होकर राजू (वृद्ध) बोला - सच कहूँ तो अब मैं अपनी गलती समझ चूका हूँ| मुझे तो फांसी हो जानी चाहिए थी| दरअसल, मैं अपनी पत्नी पर शक करता था, और इसी वजह से मैंने उसका खून कर दिया| देवी बोली - बबलू, पूछो उससे, क्या वह अपनी पत्नी से मिलना चाहता है| बबलू के पूछते ही राजू बोला - तब क्या मेरी पत्नी अस्पताल में जाकर बच गयी थी! बबलू बोला - नहीं, दरअसल आप भी मर चुके है और आपकी पत्नी भी| यहाँ तक कि हमलोग भी मर चुके हैं| अभी हमलोग सब परलोक में पहुँच चुके है| आपका उद्धार करने के लिए ही हम यहाँ आये है| मेरे साथ दो देवियाँ भी आई हुई हैं| क्या वे आपको दिखाई नहीं दे रही हैं| वे यहीं हैं| आपकी ये अवस्था देखकर उनको दया आई| अब आप ज्यादा मत सोचिये| आपकी पत्नी से हमलोग मिलवा देंगे| वृद्ध को ये सब विश्वास ही नहीं हो रहा था| तब कुछ समय तक बबलू ने राजू को परलोक कि कुछ बातें बतायीं|

देवी बोली - ये सब बोलने से उसको कोई फ़ायदा नहीं होगा| वह बहुत निम्न-स्तर का है, उसको नहीं समझ में आएगा| उसके पास उतनी बुद्धि नहीं है, अतः उसको समझाने के लिए दूसरा रास्ता अपनाना होगा| उसकी पत्नी को लाकर मिलवाना होगा| पर उसको देखकर लगता ही नहीं है कि उसकी पत्नी के साथ उसका कोई बंधन है| इस अवस्था में दोनों को मिलाना कठिन होगा थोड़ा| ऐसे लोगो को जिसके साथ कोई स्नेह या प्यार नहीं रहता, उसके साथ मिलाना उतना आसान नहीं होता| देखो न इतना समझाने पर भी कि वृद्ध आप मर चुके है, नहीं समझा| देवी बोली - सिर्फ बुद्धिहीन ही नहीं, मैंने ऐसी हृदयहीन और प्रेमहीन आत्मा बहुत कम ही देखी है| वैसे हाँ अभी पछतावा तो है, लेकिन अब क्या फ़ायदा| अंततः, बहुत कष्टों से वे तीनो निम्न-स्तर के बहुत जगहों से खोजकर उनकी पत्नी को उनके पास ले आये| उनकी पत्नी कि भी बुद्धि उतनी नहीं थी| मन में प्रेम-भावना कि भी कमी थी| बहुत ऊँचे स्तर की आत्मा न होते हुए भी वृद्ध की इच्छा कुछ ज्यादा ही थी| बबलू वृद्ध को बोला - पहचान रहे है इन्हें| वृद्ध चमकते हुए बोला - अरे ये तो मेरी पत्नी है| तुम अभी तक जिंदा हो...!!! उसकी पत्नी बोली - जी नहीं, आप और मैं दोनों ही मर चुके हैं| ये सब यहाँ आये है हमलोगों का उद्धार करने के लिए| अतः हमें इनलोगों का शुक्रिया अदा करना चाहिए| फिर वृद्ध बबलू को प्रणाम भी किया और उन तीनो का शुक्रिया अदा भी किया| फिर वे लोग वह से चल दिए|

चलते हुए देवी बोली - जो लोग विश्व के रहस्य को नहीं समझते, वे लोग अपनी आत्मा का भविष्य कैसे समझेंगे| ये सब लोगो को पृथ्वी पर अभी बहुत बार जन्म लेना होगा, तभी वे ऊपर के स्तरों में जाने में समर्थ होंगे| खैर, अब मैं तुमदोनो से विदा लूँगी| मुझे अब जाना होगा| पर जब भी तुम मुझे याद करोगे, मैं आ जाऊँगी| तुमलोग भी अब अपने जगह को जाओ| फिर वे सब अपने-अपने घर को चल दिए|

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