Monday, June 11, 2012

भाग २


इसी का नाम अगर मृत्यु है तो लोग डरते क्यूँ है| कितना अच्छा तो लग रहा है| यही सब सोचते-सोचते बबलू को एहसास हुआ कि वह एक नए जगह में आ गया है| वह जगह पृथ्वी कि तरह ही था| आस-पास पहाड़-पर्वत, नदी-नाला सबकुछ था| पर सौंदर्य पृथ्वी से भी अनूठा था| आकाश में सूर्य नहीं है, पर अँधेरा भी नही है| पेड़-पौधे, फूल-पत्ते जैसे सब चमक रहे थे| पूरा वातावरण इतना अनोखा था कि क्या कहने| सब अपने-अपने रंग में रमे हुए थे| बबलू कि आँखे तो फटी-की-फटी रह गयी| और हो भी क्यूँ ना, ऐसे अनुपम और अद्वितीय जगह को देखकर कोई भी आश्चर्य-चकित हो सकता है|

तभी नेहा एक जगह आकर रुकी और बोली - "यही सवर्ग है|" पर स्वर्ग भी यहाँ अलग-अलग तरह के होते है| क्यूँकि स्वर्ग के भी कई स्तर होते है| सबका स्वर्ग एक जैसा नहीं होता है| यह हमारा स्वर्ग है| बबलू को नेहा एक घर में ले आई| पर यह ईंट-पत्थर,लकड़ी या संगमरमर से नहीं बना हुआ था; मानो किसी चमकदार चीज़ से बना हुआ था| घर के चारो ओर बगीचा, कई तरह के सुन्दर-सुन्दर फूल, तरह-तरह के फल, और ना जाने बहुत कुछ जो धरती में भी ना देखे जाते हो| एकदम से रमणीय दृश्य था वहाँ का|

नेहा बोली यह सब मैंने तैयार किया है| दरअसल, तुम्हारी आस में ही मैंने यह सब तैयार किया है और सालों से इंतज़ार कर रही हूँ| यहाँ पर सब कुछ कल्पना से ही होता है| यहाँ कोई भी अपनी कल्पना से कुछ भी कर सकता है, बना सकता है| अतः यह मेरी ही कल्पना है| बबलू पुछा - यह कैसे हो सकता है ? वह बोली - सुनो बबलू, यहाँ की हर वस्तु कल्पना-शक्ति पर आश्रित है| पृथ्वी की चीजों की तरह यहाँ की चीज़ें नहीं है| और इसके अलावे और भी अनेक चीज़ें है जो तुम्हें धीरे-धीरे बाद में खुद ही पता चल जाएँगी| इसलिए हां, कल्पनाशक्ति का प्रयोग करना तुम्हे भी सीखना होगा| पृथ्वी में जैसे कुछ भी बनाने से पहले सोचना पड़ता था, यहाँ भी तुम्हे वैसे ही सोचना होगा, लेकिन उससे कही अधिक ज्यादा| कल्पनाशक्ति को जो बढ़ा सकता है वही अपनी इच्छा से चल सकता है|

अच्छा नेहा मेरे माता-पिता कहाँ है ? चिंता मत करो, अभी ही आयेंगे वे लोग, कही और रहते है| सुनो धयान से, यह तृतीय स्तर के ऊपर के भाग है| तुम्हे अपने जीवन में अनेक-अनेक कष्ट झेलने पड़े है, इसलिए यहाँ आ सके हो| वैसे देखा जाये तो मैंने ही तुम्हे यहाँ बुलाया है, इसलिए तुम यहाँ तक आ सके हो| मैंने भगवान् से बहुत प्रार्थना की थी तुम्हारे दुःख के समय के लिए| वह सब बात क्या तुम जानते हो, शायद नहीं! नहीं तो साधारण लोग मरने के बाद यहाँ नहीं आ सकते है| मेरी माँ की भी मृत्यु हो चुकी है, लेकिन वह किसी और स्तर में है| इस स्तर का नियम है की तुम अपनी इच्छानुसार न किसी को देख सकते हो और न दूसरा कोई तुम्हे देख सकता है|

चलो अब तुम्हें पृथ्वी में लिए चलती है, जहाँ तुम्हारे मृत शरीर का दाह-संस्कार किया जा रहा है, तुम्हें देखना चाहिए| नेहा बबलू का हाथ पकड़ी और दोनों स्वर्ग से विलीन हो गए| फिर वे दोनों शमशान में पहुंचे और देखने लगे की कैसे उसका मृत शरीर धूं-धूं कर जल रहा है| गाँव वाले वही आपस में बात करने लगे कि अब मीना (बबलू कि पत्नी) को इसकी खबर कैसे दी जाये|

फिर बबलू बोला - नेहा, मीना को देखने कि बड़ी इच्छा हो रही है| क्या तुम मुझे उसके पास लिए चलोगी ? उसकी तो मैंने जैसे ज़िन्दगी ही बर्बाद कर दी| उसके लिए मन बहुत उदास हुआ जा रहा है| नेहा बोली - "ठीक है|" अच्छा सोचो कि जैसे तुम मीना के घर गए हो अभी, एकदम एकाग्रता के साथ सोचो, तभी ही तुम देख पाओगे उसे| इधर मीना को तो इसकी खबर ही नहीं थी कि उसके पति कि मृत्यु हो चुकी है| वह अपने मईके में तो बड़े ही चैन की नींद से सो रही थी| उसको आराम और चैन से सोते हुए देख बबलू की आँखें भर आई| वह सोचने लगा - अब तो ये और मेरा बेटा, दोनों कैसे असहाय हो गए है| आज तो इन्हें पता नहीं, लेकिन एक-न-एक दिन तो इन्हें पता चल ही जायेगा|

मेरा पुत्र भी इस उम्र में अपने पिता को खो दिया| सच में कितने अभागे है ये| नेहा बोली - "चलो अब पृथ्वी में ज्यादा देर रुकने का नियम नहीं है| और वैसे भी तुम यहाँ रहकर उनकी कोई सहायता भी नहीं कर सकते| और ये कहते-कहते अचानक जैसे पृथ्वी उनके दृष्टि से ओझल हो गयी| चारो तरफ सिर्फ बादल ही बादल नज़र आने लगे| बबलू ऊपर आकर देखा कि एक औरत उसका इंतज़ार कर रही थी| उसे लगा कि उसे जैसे उसने कही देखा है| तभी वह औरत दौड़कर बबलू को गले लगा ली| उसे भी याद आ गया - माँ, तुम ? वह तो एकदम से अवाक् हो गया| ख़ुशी से उसकी आँख भर आई| फिर उसने अपनी माँ को प्रणाम किया| ५३ साल कि उम्र में ही उसके माँ कि मृत्यु हो गयी थी| किन्तु अभी भी उनके मुख-मंडल पर वार्धक्य (बुढ़ेपन) का कोई चिह्न ही नहीं था| बबलू पूछा - "बाबा कहाँ है माँ ?" बबलू के बात ख़त्म करते ही उसके बाबा भी आ गए| उसके बाबा भी जवान लग रहे थे| दरअसल उस जगह में कोई भी वृद्ध नहीं रहता, सभी जवान दिखते है| बबलू ने अपने बाबा के पैर छुआ और उनका आशीर्वाद लिया| बाबा आशीर्वाद देते हुए बोले - "और कुछ दिन जीवित रहते तो, ज़मीन-जायदाद की देखभाल कर सकते थे|" इसपर माँ ने कहा - आप भी ना, पृथ्वी से तो अभी-अभी आया है और आप है कि उसको जमीन-जायदाद के मोह-माया में फिर से डाल रहे है| यहाँ पर अब संपत्ति के बारे में बात करने से क्या फायदा| इसी जायदाद के चक्कर में आप द्वितीय स्तर में ही रह गए| इतना समझाने पर भी आप अभी तक पृथ्वी के उस बेकार से संपत्ति पर आँख गड़ाये हुए है|

बबलू पूछा - "माँ, आप किस स्तर में है अभी ?" बेटा मैं तो द्वितीय स्तर में हूँ| तुम्हारे बाबा को छोड़कर मैं कैसे आ सकती हूँ| इस स्तर में तो हमदोनों तुम्हारे लिए ही आये है| तुम्हारे बाबा इस स्तर में ज्यादा देर नहीं रह सकते| नेहा के तेज़ वे सहन नहीं कर सकते| क्यूंकि नेहा कि आत्मा का स्तर बहुत ही ऊँचा है| वह तो बीच-बीच में इसके ऊपर के स्तरों में भी जाती है| मुझे भी इच्छा होती है वहां जाने की,पर जा नहीं सकती| हाँ इसके मुँह से वहाँ की सारी बातें सुनती हूँ| हमें तो वहाँ तक जाने में कई साल लग जायेंगे और शायद फिर भी हमलोग ना पहुँच पायें| साधारण लोग जो पृथ्वी से आते है वे इतने निम्न स्तर में रहते है कि उनके लिए तो जैसे वही स्तर स्वर्ग के समान लगता है| इसके ऊपर के स्तरों कि तो बात ही छोड़ दो| दरअसल दोस्तों, स्वर्ग का स्तर इन्सान के कर्मों के अनुसार ही मिलता है |

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