Sunday, June 17, 2012

जीवन-मृत्यु चक्र [...life-death cycle...]


हाँ तो दोस्तों, मैं यहाँ जीवन और मृत्यु के चक्र के बारे में बताने जा रहा हूँ| आखिर क्या होता है मृत्यु के बाद...| हमलोग कहा जाते है आखिर में| हमारी क्या स्थिति होती है वहाँ पर| किस अवस्था में रहते है हम या यूँ कहे तो हमारी आत्मा| तो दोस्तों, मृत्यु के बाद भी ऐसा ही एक जीवन होता है, जैसा इस पृथ्वी-लोक में विद्यमान है| लेकिन यह जीवन एकदम अलग, एकदम परे होता है| मृत्यु के बाद का जीवन किसी भी रूप में हो सकता है| वह जीवन मूलतः वर्तमान कर्मफल के अनुरूप ही प्राप्त होता है| जीवन का यही तो चक्र है| अर्थात दोस्तों, मृत्यु के पहले का जीवन उसके पूर्वजन्म के कर्मों के अनुरूप और मृत्यु के बाद का जीवन उसके वर्तमान जन्म के कर्मों के अनुरूप होता है| इसी चक्र के आवरण में ही ये पूरी दुनिया कायम है, और इसे चलानेवाले हमारे सर्व-शक्तिमान भगवान्|

मृत्यु के बाद का जीवन या तो बहुत ही ख़राब होता है या तो बहुत ही अच्छा| मृत्यु के बाद ऐसे बहुत सारे स्तर होते हैं, जिन्हें हमें पार करना होता है| उन स्तरों में आत्माएँ या तो यातनाएँ पाती हैं या फिर सुख| उन स्तरों को पार करके ही आत्माएँ आगे बढ़ती है और विकसित होती है| ये सारे स्तर भी हमें हमारे पूर्व और वर्तमान कर्म के अनुसार ही मिलते हैं| तात्पर्य यह की, हम इस जीवन में जैसे कर्म करेंगे, हमें वैसा ही फल अगले जन्म में मिलेगा|


जीवन<------------>मृत्यु<------------>जीवन


वैसे देखा जाये तो दोस्तों कुल मिलकर मुख्यतः १४ (चौदह) स्तर हैं| ७ (सात) स्वर्ग के और ७ (सात) नरक के| जो जैसा बोयेगा उसको वैसा ही फल मिलेगा|

स्वर्ग ~ स्वर्ग के स्तरों की अगर बात की जाये तो कहा जायेगा कि सही में स्वर्ग, स्वर्ग ही है| दोस्तों, यहाँ पर रहने वाले स्तरों कि आत्माओं के अपने अलग ही गुण होते है| उनकी अपनी एक इच्छाशक्ति होती है, जिन्हें उनको जगाना होता है| और एक बार अगर वो इच्छाशक्ति जाग जाये तो फिर ऐसी आत्माएँ अपने इच्छानुसार कुछ भी गढ़ सकती है स्वर्ग में| एक ही पल में घर, बागीचे, पेड़-पौधे, मंदिर कुछ भी बना सकती हैं| यहाँ कभी अँधेरा नहीं होता| चारो तरफ हमेशा ही रौशनी होती है| जीवन सुखमय होता है| बस चाहिए कि ईश्वर कि आराधना करे| उनकी उपासना करे| इन स्तरों में रहने वाले आत्माओं का जीवनकाल भी या तो बहुत ज्यादा होता है या फिर कम| ये पूर्णतया निर्भर करता है उस आत्मा पर| उसकी ईश्वर-भक्ति, आस्था पर| जो जितनी शक्ति से और मन लगाकर भगवान् कि आराधना करता है, उन्हें याद करता है, वैसी आत्माएँ जल्दी ही ऊपर के स्तरों में जाने लगती है| और धीरे-धीरे ऊपर जाते-जाते अंत में उन्हें मुक्ति कि प्राप्ति होती है| उन्हें भगवान् के दर्शन होते है| जैसे-जैसे वे ऊपर के स्तरों में जाने लगते है, उनकी शक्ति बढ़ती जाती है| उन आत्माओं में एक तेज़-सा आने लगता है|
लेकिन दोस्तों, यहाँ ये भी है कि जो आत्माएँ स्वर्ग में पहुँचने के बाद पृथ्वी-लोक का मोह त्याग नहीं कर पाते, जो हमेशा अपने-जनों को याद करते रहते है, भगवान् कि आराधना नहीं करते; वे ऊपर के स्तरों में नहीं जा पाते| दरअसल उनका पुनर्जन्म हो जाता है| वे फिर से पृथ्वी-लोक में आ जाते है| जिन आत्माओं को संसार का लालच,मोह होता है, वे कभी ऊपर कि ओर नहीं उठ सकती| उन्हें पृथ्वी अपनी ओर खिंच लेती है| और यही चक्र चलता रहता है|

नरक ~ नरक तो अपने-आप ही में बहुत दुखदायी जगह है| क्या कहूँ दोस्तों, नरक के बारे में जितना वर्णन करूँ उतना ही कम लगता है| खैर, नरक एक ऐसी जगह है जहाँ भूत,प्रेत,पिशाच और कई प्रकार कि बहुत बुरी-से-बुरी खतरनाक आत्माएँ रहती है| कुछ आत्माएँ बाद में अच्छी भी हो जाती हैं| उनको अपने कर्मों का पछतावा होता है| परन्तु कुछ तो सिर्फ बदला लेने,डराने और हानि पहुँचाने में विश्वास रखते है| ये वहीँ आत्माएँ होती है, जो पृथ्वी लोक में आते है और लोगो को डरते है या उनका जीवन ही समाप्त कर देते हैं| खैर इनके बारे में मैं बाद में विस्तार से बताउँगा| फिलहाल बात ये है कि नरक आखिर में कैसा होता है| संछेप में अगर कहूँ तो नरक सही में नरक ही है| यहाँ चरों तरफ अन्धकार ही अन्धकार फैला रहता है| न खाने को कुछ रहता है न पीने को कुछ| कोसों तक, मरुभूमि जैसी जगह फैली होती है| एकदम विरान, एकदम ही निर्जन| कोई कही नहीं है| सिर्फ भूत और प्रेत ही दिखाई देते हैं| कोई आत्माएँ न जाने ५०० या उससे अधिक वर्षों से है तो कोई न जाने कितने वर्षों तक| उनलोगों कि जल्दी मुक्ति नहीं होती| यहाँ पर तो खासकर वैसी आत्माएँ पहले आती है जिन्होंने अपने जीवनकाल में पृथ्वी में आत्महत्या कि है| क्यूँकि कहा जाता है कि आत्महत्या करना एक बहुत ही बड़ा पाप होता है|
अगर इन आत्माओं को अपने किये का पछतावा होता है तो इनका फिर से जन्म होता है, ताकि ये अपनी गलती को सुधार सके| इससे वे फिर ऊपर अर्थात स्वर्ग में जाने में समर्थ होते है| परन्तु ये तभी होता है जब ये पृथ्वीलोक में जाकर कोई गलत कार्य न करे| अन्यथा ये फिर से नरक में ही आ जाते हैं| और ये चक्र चलता रहता है| कुछ आत्माओं को जब मुक्ति नहीं मिलती तो वे पृथ्वीलोक में आकर घूमते रहते है| इनका मकसद होता है कि ये किसी भी प्रकार से किसी अच्छे आत्मा में घुस पायें| इसलिए ये कहा भी जाता है और सच भी है कि अच्छी आत्मा वाले व्यक्तियों को मरने के बाद उनका तुरंत दाह-संस्कार कर देना चाहिए| क्यूँकि यही भूत-प्रेत और बुरी आत्माएँ उसमे प्रवेश करना चाहती हैं|

एक बार जब जीवन-मृत्यु का चक्र शुरु होता है तो यह चलते रहता है, जबतक कि हमें मुक्ति नहीं मिल जाती| और दोस्तों मुक्ति का बस एक ही उपाय है, कि हम जबतक इस दुनिया में है, हमेशा कोशिश करे कि अच्छा ही कार्य करे| अपना कर्म सही रखे| सदा ईश्वर कि आराधना करें, उनकी पूजा करें| क्यूँकि मुक्ति को छोड़ बाकी सब मोह है, माया से परिपूर्ण है| इसका मतलब ये भी नहीं है कि आपको होश आये और आप कोई सन्यासी या साधू बन जाये| आप अवश्य ही अपना कर्त्तव्य निभाए| अपने प्रति, अपने माता-पिता और परिवार के प्रति| बस एक समय के बाद से बस उनके प्रति धयान दें| धर्म से जुड़े रहें| हर-एक काम में उनका धयान करें| और क्या कहूँ, उनसे प्यार करें, बातें करने कि कोशिश करें| ये सब मैं यूँ ही नहीं कह रहा हूँ| यही सच्चाई है| हम जैसे दूसरों से बात करते हैं, उनसे भी कर सकते हैं| बस जरुरत है तो उन्हें अनुभव करने की, जो की बहुत सरल भी है|
तो दोस्तों यही था जीवन-मृत्यु का चक्र, एक खत्म होता है तो दूसरा शरू| परन्तु इसकी डोर हमेशा से ही हमारे हाथ में ही होती है| अतः हम इस चक्र को खुद समाप्त भी कर सकते है| और अबतक तो आप समझ भी गए होंगे कैसे...!

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