Tuesday, June 12, 2012

भाग १


बबलू नाम का एक ब्राह्मन लड़का था| वह बहुत गरीब था| इस दुनिया में वह अकेला था, अर्थात उसके माता-पिता पहले ही चल बसे थे| वह बस एक छोटा-मोटा काम करता था| उसकी शादी भी हो गयी थी और उसको एक लड़का भी था| लेकिन बबलू के साथ एक समस्या थी| वह हमेशा ही बीमार पड़ जाता था, जिससे उसके काम पर भी असर पड़ता था| इसलिए उसके लिए घर चलाना भी कठिन हो गया था| पैसे नहीं होने के कारण वह अपना तथा अपने परिवार का ठीक से भरण-पोषण भी नहीं कर पाता था| लेकिन इस तरह कितने ही दिन और कैसे चलता, लड़का भी अब बड़ा हो रहा था| पर उसका गरीबी के कारण पालन-पोषण भी नहीं हो पा रहा था| अतः इसी दयनीय स्थिति को देखकर मीना घर छोड़कर अपने बेटे को लेकर मायके चली गयी| उधर अपनी बेटी की ऐसी हालत देखकर उसके माता-पिता भी उसको बबलू के पास फिर से भेजना नहीं चाहते थे| समय भी इसी तरह यूँ ही बीतता चला गया| बबलू की बीमारी भी बढ़ती ही गयी दिन-ब-दिन|

एक दिन की बात है, उसके आस-पड़ोस के रहने वाले लोगो ने गौर किया की आज बबलू घर से बाहर निकला ही नहीं; और-तो-और घर का दरवाज़ा भी बहुत देर तक बंद है, खुला ही नहीं| ऐसे ही देखते-देखते एक पहर बीत गया| पडोसी भी बातें करने लगे की क्या बात है, अभी तक दरवाज़ा क्यूँ नहीं खुला है| तो उन्होंने सोचा की क्यों न आवाज़ लगायी जाये| गाँव के कुछ युवक बबलू के दरवाज़े के सामने आवाज़ देने लगे- "ओ बबलू दरवाज़ा खोलो, बबलू...| दोपहर होने को है, क्या कर रहे हो|" पर अन्दर से कोई आवाज़ नहीं आई| कुछ समय बीता तो लोगो ने सोचा की अब दरवाज़ा तोड़ देना ही उचित होगा| कई लोग तो संदेह भी करने लगे| अंततः दरवाज़ा तोडा गया और अन्दर घुसते ही लोगो ने देखा की बबलू सोया हुआ है| पास जाकर एक ने टटोला और देखा की यह तो जीवित ही नहीं है, बल्कि उसकी लाश पड़ी है| पता नहीं कब से मारा पड़ा है|

बबलू ने अचानक देखा की एक युवती उसके बगल में आकर खड़ी मुस्कुरा रही है| वह नेहा थी, उसके बचपन की दोस्त| और सबसे बड़ी बात थी की वे एक दुसरे से बहुत प्यार भी करते थे| परन्तु १५ साल की उम्र में ही नेहा की मलेरिया से मौत हो गयी| वैसे तो ये बहुत पहले की बात थी| फिर बाद में बबलू ने मीना से शादी की थी| दोस्तों अब आप सोच रहे होंगे कि यहाँ बबलू तो मर चूका है, तो उसको नेहा कैसे दिखाई दी या उसकी बात बाद में कैसे होने लगी | लेकिन ये सच है, क्यूंकि अब बबलू जीवित नहीं था, बल्कि उसकी आत्मा यह सब देख रही थी, बात कर रही थी |

इधर बबलू नेहा की तरफ एकटक देखता रहा और बोला - तुम यहाँ, कैसे आई| तुम्हारी तो मौत हो चुकी थी ना| नेहा हँसने लगी और बोली - अरे! तुम्हारी भी मृत्यु हो चुकी है... नहीं तो तुम्हारी मुझसे मुलाकात कैसे होती| अचानक ये बात सुनकर बबलू सोचा, ये क्या बोल रही है| मैं और मर गया, कब और कैसे! उसे भय लगने लगा| मैं तो बीमार था| पर,पर..... उसके बाद| ओह! शायद मैं कोई सपना देख रहा हूँ| पर जो भी हो सपना भी अच्छा ही लग रह है| कितने दिनों बाद मेरी नेहा से मुलाकात तो हुई| नेहा लेकिन बबलू को ज्यादा सोचने नहीं दी और बोली की मेरा यहाँ दम घुट रहा है, तुम मेरे साथ आओ| मैं यहाँ ज्यादा देर नहीं रह सकती| बबलू बोला - क्या मैं पागल हो गया हूँ ? ये यहाँ, कहाँ से आई और मझे कहाँ ले जाना चाहती है| मैं तो यही लेटा हुआ हूँ| अच्छा ये बताओ तो तुमको कैसे पता कि मैं बीमार हूँ ? पर वह तुरंत सोचने भी लगा की मैं भी किससे प्रश्न कर रहा हूँ, ये तो २३ साल पहले ही मर गयी है| अदभुत स्वप्न है| ऐसा सपना तो मैंने पहले कभी नहीं देखा|

नेहा - "मैं तो कल से ही तुम्हारे पास बैठी हुई हूँ|"
बबलू - "क्या मेरा दिमाग ख़राब हो गया है, क्या बोल रही हो ?"
नेहा - शुरू-शुरू में सब यही सोचते है, वो खुद ही नहीं समझ पाते की क्या हुआ है आखिरकार या फिर बाद में| तुम चलो यहाँ से बस|

नेहा बबलू का हाथ पकड़कर जैसे ही उसको खटिया से उठाई, वह एकदम स्वस्थ और हल्का महसूस करने लगा| फिर क्या सोचकर वह जैसे ही खटिया में देखा तो एकदम सुन्न हो गया| उसने देखा, उसी की तरह एक व्यक्ति लेटा हुआ है वहाँ पर| दरअसल वह और कोई नहीं बबलू खुद अर्थात उसका मृत शरीर था| बबलू खड़े मत रहो| अब तो तुमको विश्वास हो गया होगा की तुम अब इस दुनिया में जीवित नहीं हो| बबलू सोच ही रहा था की नेहा तुरंत उसे बिना दरवाज़ा खोले हुए ही बाहर ले गयी| अब तो बबलू एकदम से अवाक् रह गया| सोचने लगा, नेहा बिना दरवाज़ा खोले कैसे बाहर ले गयी...| नेहा बोली - "क्या अब भी तुम्हे विश्वास नहीं हो रहा है, देखो अब तो हमलोग दीवार भेद के भी निकल आये|" ईंट की ये दीवार अब हमलोगों के सामने धुएँ की तरह है| इस दुनिया की कोई भी वस्तु अब हमें छु भी नहीं सकती| सबसे मज़ेदार बात तो यह है कि तुमको लग रहा होगा हमलोग पैदल नहीं उड़ कर जा रहे है| अब तो बबलू को लगने लगा कि शायद ये सच कह रही है| फिर भी उसके मन में कई तरह के विचार उठने लगे| क्या अभी भी यह कोई सपना है या हकीकत| लेकिन नेहा भी कहाँ से.......... हे भगवान्| उसको कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था| बस नेहा आगे-आगे और बबलू उसके पीछे-पीछे जाने लगा| इस तरह का अदभुत वाक्या आजतक उसके जीवन में कभी नहीं घटा था| बबलू फिर सोचा - "क्या यह मेरे मन का फितूर है या सच में मेरी मृत्यु हो गयी है|

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