Saturday, June 9, 2012

भाग ३


ऐसे ही कई दिन बीतते गए| एक दिन बबलू नेहा से कहने लगा - हमलोग यहाँ कितने दिनों से रह रहे हैं, पर दिन-रात का तो पता ही नहीं चल रहा है| हम्म...! पृथ्वी की जैसी आदत जाने में अभी समय लगेगा तुम्हे| जबतक की तुम्हे पता नहीं चलेगा कि समय का कोई अंत नहीं है, तबतक तुम्हारी मुक्ति नहीं होगी| किस तरह कि मुक्ति नेहा| नेहा बोली - मुझे उतना तो नहीं पता पर तुम्हे वहाँ जरुर ले जाऊँगी, इसके ऊपर के स्तर में| वहाँ की एक आत्मा मुझसे बहुत स्नेह/प्यार करती है| वे यहाँ नहीं आ सकते है, इसलिए मैं ही जाती हूँ| तुम्हें भी ले चलूँगी एक दिन| मैं उनको गुरु-देवी बुलाती हूँ| बबलू बोला - अच्छा तो मैं वो सब स्तर में कैसे जाऊंगा| अभी-अभी तो आया हूँ| और वैसे भी मैं तो इस स्तर में भी सिर्फ तुम्हारी वजह से आया हूँ, वहाँ तक कैसे जा पाऊंगा| नेहा बोली - वैसे जाना उतना तो कठिन नहीं है, पर जयादा देर वहाँ रह नहीं सकते| तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हारे जाने कि व्यवस्था कर दूंगी|

अच्छा बबलू वह सब अभी रहने दो| अभी तो तुम चलो मेरे साथ, मैं एक जगह लिए चलती हूँ| आज जानते हो, तुम्हारे श्राद्ध का दिन है| तम्हारा बेटा श्राद्ध का पालन कर रहा है| पिंड दान के समय तुम्हें यह स्वीकार करना होगा| अपने पुत्र के बारे में सुनते ही बबलू उदास हो गया| बहुत ही करुण स्वर में बोला - मैं वहाँ नहीं जाऊंगा| नेहा बोली - तुम इस जगत के बारे में नहीं जानते हो| तुम्हारा बेटा जब रोते हुए पिंड दान करेगा तो उस आकर्षण-वस तुम खुद-ब-खुद खींचे चले जाओगे| मेरा क्या है, तुम्हारा श्राद्ध है, तुम मत जाओ| जो सच्चे मन से पुकारेगा, इस जगत में उसकी पुकार विथा नहीं जाएगी|

अच्छा, तुम यहाँ बैठो, मैं वहाँ से आती हूँ| फिर नेहा थोड़ी देर में आकर बोली - अभी वहाँ सुबह के सात बजे हैं| तुम्हारा बेटा अभी सो रहा है| बबलू की इच्छा बहुत हुई की पूछे मीना क्या कर रही है, परन्तु लज्जा से वह पूछ नहीं पाया| अच्छा चलो, मैं तुम्हे ऊपर के स्तर पर ले चलती हूँ| पर इसके लिए तुम्हे पृथ्वी की सारी बातों को भूलना होगा| मुझसे नहीं होगा नेहा| मीना की बहुत याद आ रही है| अच्छा ठीक है, लेकिन हाँ, दया या सहानुभूति की बातें सोचो तो फिर भी ठीक है; लेकिन अपने जमीन-जायदाद या संपत्ति के बारे में मत सोचना नहीं तो नीचे के स्तर में चले जाओगे| फिर दोनों थोड़ी देर में चल दिए| दूर और कितनी ही दूर वे लोग चले गए एक अनजान जैसे स्वर्ग में| दूर से ही उस जगह के प्रकाश से बबलू की सारी जैविक चेतना का ह्रास होता गया| वह बेहोश हो गया| नेहा को लगा ही था की यहाँ आकर बबलू की ऐसी हालत हो सकती है, फिर भी वह लेकर आई की शायद वह आ सके| इधर बबलू तो बेहोशी की हालत में ही था| नेहा ने उसके चेतना को जगाने की बहुत कोशिश की परन्तु नाकामयाब रही| यहाँ तक की उसने अपनी चुम्बकीय शक्ति का भी प्रयोग किया पर असफल रही|

नेहा वहाँ के झरने का पानी पिला ही रही थी कि तभी उसकी दृष्टि एक तेज़ रोशनी पर पड़ी| वह दरअसल उस स्तर की देवात्मा थी| उस आत्मा ने जैसे ही अपनी आँखे खोली, बहुत तेज़ रोशनी उन दोनों पर पड़ी| उन्होंने पूछा - कौन हो तुम दोनों ? नेहा ने सारी बातें बतायी| देवात्मा ने कहा - ये यहाँ ठीक नहीं होगा| जहाँ से इसे ले आये थे, वहीँ ले जाओ, इसकी चेतना वही लौटेगी| मेरे ठीक करने से भी यह ठीक नहीं होगा| तुम इसके नीचे के स्तर की हो इसलिए तुम मुझे देख पा रही हो, अन्यथा ये संभव नहीं है| नेहा उसे वहाँ से ले गयी| थोरी ही देर बाद बबलू उठा और बोला - हमलोग कहाँ जा रहे है? हमलोग अपने घर जा रहे है| तुम यहाँ आते ही बेहोश हो गए थे| फिर उसने उस आत्मा के बारे में भी बताया जिसे वह देख नहीं पाया था| उस देवात्मा ने कहा था कि ऐसे सात स्तर है, जिसमे मनुष्य अपने कर्मों के द्वारा पहुँच सकता है|

चतुर्थ स्तर में ही तुम बेहोश हो चुके थे, अन्यथा मीना को लाकर तुमसे मिलवा देती| बबलू बोला - वह कैसे ? तुम मीना से कैसे मिल सकती थी ? देखो, वह जब सोएगी तो उसके शरीर से आत्मा को बुलाकर तुमसे मिलवा सकती हूँ| मैं यह कर सकती हूँ, परन्तु मीना अपनी सुध खो देगी उस वक्त तक के लिए जब उसे यहाँ लाऊंगी| बबलू बोला और कोई उपाय नहीं है| पृथ्वी में जाकर भी तो हमलोग उससे बात कर सकते है ना| हाँ, ये हो सकता है परन्तु बहुत कठिन है| क्यूंकि, मीना को ये सब बात नहीं पता है कि मनुष्य के मरने के बाद क्या होता है या वह कहाँ जाता है| इसलिए अचानक तुम्हे देखेगी तो डर जाएगी| उसे लगेगा कि भूत देख रही है| ठीक है, बात नहीं करेंगे लेकिन एक बार देख तो सकते है ना|

ठीक है, अपनी इच्छाशक्ति को प्रबल करो, जगाओ कि मैं मीना को देखूंगा या उसको दिखाई दूंगा| परन्तु पृथ्वी के समयानुसार दो घंटे तक कोशिश करने के बाद भी वह अपने को उसे नहीं दिखा सका| मीना खाना बना रही है, अपने बेटे को खिला रही है, इधर-उधर जा रही है, बबलू यह सब देख रहा है और-तो-और उसे बुला भी रहा है - मीना, ओ मीना, देखो मैं यहाँ आया हूँ तुमसे मिलने| किन्तु मीना को ना कुछ दिखाई दिया और ना ही सुनाई| नेहा बोली, छोड़ो बबलू, रहने दो| उसका मन अभी चंचल है| जब वह सो रही होगी, तब उसके सामने तुम खड़े होना| उस वक्त उसकी एकाग्रता भी बनी रहेगी| बबलू बोला - हम्म्म्म..., लेकिन यह नहीं हो सकता, क्यूंकि वह सारी रात बिजली जलाकर सोती है| और मैं तो बिजली के सामने नहीं आ सकता| ठीक है, बाद में देखते है, अभी घर से बाहर निकलो तब|

घर से निकलते ही वह सोचने लगा कि किसी दिन मैं यहाँ अपने साथियों के साथ ताश वगेरह खेलता था| वही नदी-नाला, जहाँ मैं मछली पकड़ने जाता था| बबलू उन पुराने दिनों के बारे में सोच ही रहा था कि तभी पीछे से कोई बोला - कौन है वहां ? नेहा और बबलू पीछे घुमे और देखा कि बबलू का एक साथी पोखर के पास है| नेहा बोली - तुम पृथ्वी के घटनाओं के बारे में बहुत सोच रहे थे इसलिए ही तुम्हारे दोस्त को तुम दिखाई दे दिए| बबलू को देखते ही उसका दोस्त चीखने लगा| बब्लू भी एकदम से अवाक् रह गया कि मेरा इतना अच्छा दोस्त मुझे देखकर चीख क्यूँ रहा है, मैं कोई बाघ-भालू थोड़े ना हूँ| उसके चीखने कि आवाज़ सुनकर आस-पास के लोग भी आ गए| सबने पूछा - क्यूँ चीख रहे हो ? क्या हुआ ? वह कांपते हुए बोला - वहाँ, वहाँ पर कोई एक सफ़ेद कपड़ों में लिपटा हुआ आदमी खड़ा था और पूछते ही कि कौन है, विलीन हो गया| सबने बोला - ओह्ह्ह्ह ! ये सब कुछ नहीं, तुम्हारा वहम् होगा| ऐसा थोड़े ही ना होता है| पर वह बोला कि मैंने भांग थोड़े ही ना पी रखी है कि मैं गलत बोलूँगा| तो इसपर कुछ लोग साहसपूर्वक आगे बढ़के देखने गए कि कोई सच में पेड़ के पीछे है क्या| बबलू और नेहा वही घूम रहे थे, पर गाँववाले उनको नहीं देख पा रहे थे| बबलू कौतुहल पूर्वक बोला - नेहा, सब अंधे हो गए है क्या? मैं तो यही हूँ और कोई मुझे देख ही नहीं पा रहा| नेहा बोली - अच्छा है, तुमको कोई देख नहीं पाया, नहीं तो सब बोलते बबलू भूत बनकर इधर-उधर घूम रहा है| मीना भी सुनती तो उसे भी बहुत कष्ट होता लोग बोलते उसकी मुक्ति नहीं हुई है| इसलिए दुसरो को भय दिखने का शौक मिट गया हो तो चलो यहाँ से अब| फिर वे लोग स्वर्ग कि ओर चल दिए|

तृतीय स्तर में लौटते ही उन्होंने वहाँ एक विशिष्ट नीले रंग कि ज्योति दिखी| वह दरअसल एक उच्चस्तरीय आत्मा थी| नेहा पूछी - आप कौन है ? आत्मा बोली - मैं पृथ्वी से बहुत सालों पहले आई हूँ| मैं पाचवें स्तर में रहती हूँ| बीच-बीच में निचले स्तर में आती हूँ, एवं यहाँ के लोगो को सत-उपदेश देती हूँ ताकि वे लोग ऊपर उठ सके| नेहा,बबलू उनके कथनों से आकृष्ट एवं प्रभावित हुए| उनको वैसे सब देवी करके पुकारते थे| जब भी वह आती तो ऊपर से फूल और फल ले आती थी| वैसे फल-फूल तो नीचे के स्तरों में भी मिलते है, लेकिन वह कोई ऐसा-वैसा या साधारण फल-फूल नहीं था| उसके सेवन से मन को बहुत शक्ति एवं शांति मिलती थी| फूल भी बहुत ही सुगन्धित एवं मनोरम था| परन्तु वह फूल और फल तृतीय स्तर में बहुत देर तक नहीं रह सकते थे, कर्पुर कि तरह उड़ जाते थे| क्यूंकि ये फल उपरी स्तर के थे और आध्यात्मिक शक्ति को बढाने और प्रबल करने कि एक तरह से दवा जैसे थे| अतः इनका सेवन भी जल्दी करना होता था|

1 comments:

yeatsvalero said...

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